ज्वालामुखी क्या है – volcano in hindi | ज्वालामुखी के प्रकार @ 2022

ज्वालामुखी क्या है, volcano in hindi प्रिय पाठकों आपने कभी न कभी ज्वालामुखी (Volcano) का नाम तो जरूर सुना होगा या देखा होगा यह हमारी हरी-भरी बेहद खूबसूरत पृथ्वी के गर्भ में मौजूद सोया हुआ शैतान है।

आज हम इस पोस्ट के माध्यम से ज्वालामुखी क्या है? ( volcano in hindi ) ज्वालामुखी  कैसे उत्पन्न होता है और ज्वालामुखी के प्रकार आदि का अध्ययन करेंगे. क्यों न इस पोस्ट की शुरुआत हम लावा क्या है? से करें जिससे हमें इसके बारे में समझने में आसानी भी हो और पढ़ने में दिलचस्प भी होगा।

volcano in hindi

ज्वालामुखी से जुड़े महत्वपूर्ण जानकारियां (volcano in hindi) 

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लावा क्या है? (volcano in hindi) 

जब कोई ज्वालामुखी फटता है तो पृथ्वी से निकलने वाली पिघली हुई चट्टान (या मैग्मा) को लावा कहते हैं। चूंकि लावा इतना गर्म होता है (1,100 डिग्री सेल्सियस से अधिक, 2,000 डिग्री फ़ारेनहाइट से अधिक), यह पिघला हुआ रहता है और जमीन पर तब तक बहता रहता है जब तक कि यह ठंडा न हो जाए और चट्टान में कठोर न हो जाए।

लावा ज्वालामुखियों से निकलने वाली सामग्री का सबसे सामान्य रूप है जो गैलापागोस और हवाई द्वीप जैसे समुद्री द्वीपों का निर्माण करता है। लावाफ्लो आमतौर पर केवल 1-10 मीटर मोटा होता है, लेकिन कुछ प्रवाह लावा के प्रकार और विस्फोट की मात्रा के आधार पर 50-100 मीटर जितना मोटा हो सकता है।

ज्वालामुखी क्या है? ( volcano in hindi )

ज्वालामुखी शब्द ज्वाला + मुखी दो शब्दों से मिलकर बना है जिसका शाब्दिक अर्थ होता है “ऐसा मुख जिसमे से ज्वाला निकलती हो। कई बार ज्वालामुखी से आग की ज्वालाएँ उठती हुई दिखाई पड़ती है। इसका स्पष्ट कारण है कि ज्वालामुखी उद्गार के समय कई बार ज्वलनशील गैसे जैसे हाइड्रोजन आदि निकलती है जिनके प्रज्जवलित होने से आग की ज्वालाएँ उठती हुई दिखलाई पड़ती है।

volcano in hindi इसके अतिरिक्त कभी-कभी ज्वालामुखी से निकलने वाला लावा तथा अन्य शैल खण्ड इतने तत्प होते हैं कि वे दहकते हुये अंगारे की भाँति प्रतीत होते हैं। इन सभी बातों से ज्वालामुखी से आग की लपटे निकलने का आभास हो जाता है। इसीलिये साधारण लोग इसका यही अर्थ लगाते है किन्तु सचमुच में ज्वालामुखी का आग की ज्वाला से कोई संबंध नहीं है।

प्राचीन समय में भूमध्य सागर में स्थित बोलकेनो द्वीप रोम के निवासियों द्वारा पातालपुरी का प्रवेश-द्वार माना जाता था। अतः इस द्वीप के नाम पर ही इसे वोलकेनो (Volcano) ज्वालामुखी कहा जाने लगा। आधुनिक समय में वैज्ञानिकों ने ज्वालामुखियों की प्रकृति को सुरक्षा कपाट (Safety Valves of Nature) कहा है।

ज्वालामुखी की परिभाषा (Defination of Volcano) 

1. प्रो० गीकी के अनुसार, “ज्वालामुखी लगभग शंक्वाकार पर्वत है जो भूगर्भ से नली के द्वारा उष्ण वाष्प, गैसे, लावा तथा अन्य चट्टानी पदार्थों का प्रवाह धरातल पर लाता है।

2. क्रेडनर के अनुसार, “ज्वालामुखी एक सपाट शंकु है जो एक नली के द्वारा पृथ्वी की गहराई से संबंधित होता है और भू-गर्भ से गैसें ठोस तथा जलते पदार्थों को बाहर निकालने में निकास का कार्य सम्पन्न करता है।”

3. वारसेस्टर के अनुसार, “ज्वालामुखी प्रायः एक गोल अथवा गोलाकार आकृति का छिद्र अथवा खुला भाग होता है जिससे होकर अत्यन्त तप्त भूगर्भ से गैसे, जल, तरल तत्वों एवं चट्टानों के टुकड़े आदि गरम पदार्थ पृथ्वी के धरातल पर प्रकट होते है।’

4. आर्थर होम्स के अनुसार, “वह सारी घटना जिसके द्वारा पृथ्वी की गहराईयों से मैग्मा संबंधी सम्पूर्ण पदार्थ भू-तल की ओर अथवा धरातल पर लाकर बिछा दिया जाता है, ज्वालामुखी कहलाता है।”

5. बुल्डरिज एवं मोर्गन के अनुसार, “ज्वालामुखी वह क्रिया है जिसके अन्दर पृथ्वी को भीतरी गैस और लावा आदि पदार्थ पृथ्वी के बाहर धरातल पर आकर स्पष्ट रूप से प्रकट होते है।

ज्वालामुखी विस्फोट क्या है? 

ज्वालामुखी के विस्फोट के समय लावा, टेफ्रा और विभिन्न गैसें ज्वालामुखी से निकलतीं हैं। कई प्रकार के ज्वालामुखीय विस्फोट-जिसके दौरान लावा, टेफ्रा (राख, लैपिली, ज्वालामुखीय बम और ज्वालामुखीय ब्लॉक), और मिश्रित गैसों को ज्वालामुखीय वेंट या फिशर से निष्कासित कर दिया जाता है-ज्वालामुखीविदों द्वारा प्रतिष्ठित किया गया है।

ज्वालामुखी विस्फोट के प्रकार

ज्वालामुखी विस्फोट तीन अलग-अलग प्रकार के विस्फोट होते हैं जो इस प्रकार से है

मैग्मैटिक विस्फोट

जिसमें मैग्मा के भीतर गैस का डिकंप्रेशन शामिल होता है जो इसे आगे बढ़ाता है

Phreatomagmatic विस्फोट

एक और प्रकार का ज्वालामुखीय विस्फोट है, जो मैग्मा के भीतर गैस के संपीड़न से प्रेरित है, प्रक्रिया के प्रत्यक्ष विपरीत मैग्मैटिक गतिविधि को शक्ति देता है

अग्नि विस्फोट

जो मैग्मा के संपर्क के माध्यम से भाप के अति ताप द्वारा संचालित होता है

ज्वालामुखी का कारण

ज्वालामुखी की घटना या सम्पूर्ण क्रिया का आधार भूगर्भ की स्थिति एवं वहाँ की घटना से संबंधित है। जब यह घटना तेजी से पूरी अथवा सक्रिय होती है तब भूमि के नीचे एवं सतह पर उथल-पुथल मच जाती है। यद्यपि इस सम्पूर्ण घटना की तथ्यात्मक एवं सही-सही जानकारी आज भी प्राप्त नहीं है, लेकिन फिर भी वोरसेस्टर नामक भू-वैज्ञानिक के अनुसार ज्वालामुखी क्रिया के प्रमुख कारण निम्नलिखित है

1. भू-गर्भ में ताप की वृद्धि:

पृथ्वी सौरमंडल का एक सदस्य है। धरातल से नीचे की ओर जाने पर इसके आन्तरिक भाग में आज भी अत्यन्त तापमान पाया जाता है। प्रति 32 मी. पर । सेल्शियस तापक्रम बढ़ जाता है। इसके अतिरिक्त रेडियोएक्टिव खनिजों के विखंडन से भी तापक्रम में वृद्धि होती है। अधिक ताप के कारण पृथ्वी के आन्तरिक पदार्थ, द्रव-रूप में रहते हैं। अधिक ताप से पदार्थों का आयतन बढ़ जाता है। इसलिए वे बाहर निकलने का प्रयास करते हैं।

2. लावा की उत्पत्ति:

लावा के उद्गम स्थल के संबंध में यों तो विद्वानों में मतभेद है। फिर भी कुछ विद्वानों का मानना है कि पृथ्वी के अन्दर लावा या बेसाल्ट की परत है जो ऊपर की ओर आने का प्रयास करता है। कुछ का मानना है कि अंदर लावा या बेसाल्ट की स्थायी पेटी नहीं है, दबाव कम होने पर चट्टानें पिघलकर लावा का रूप धारण कर लेती हैं।

3. गैसों व वाष्प की उत्पत्ति:

ज्वालामुखी के विस्फोट के समय अनेक प्रकार की जैसे बाहर निकलती है। जैसे- हाइड्रोजन, अमोनिया, सल्फर, कार्बन डाइऑक्साइड आदि।गैसों की उत्पत्ति के बारे में कई मत हैं। ऐसा माना जाता है कि जल पृथ्वी के भीतर पहुँचकर अधिक ताप के कारण वाष्प व गैस के रूप में बदल जाता है। एक तो समुद्रों के नीचे पानी जमा रहता है, दूसरे वर्षा आदि का जल पृथ्वी के अन्दर जाता है जो कि भाप बनकर बाहर आने का प्रयास करता है।

विद्वान प्रेगरी ने कहा है कि सागरीय जल के प्रवेश से अधिकांश ज्वालामुखी गैस व वाष्प का निर्माण होता है। क्योंकि अधिकतर ज्वालामुखी समुद्र के तटीय भागो तथा समुद्री द्वीपों पर पाए जाते हैं। ज्वालामुखी विस्फोट के समय वर्षा का होना भी ज्वालामुखी विस्फोट व जल का संबंध व्यक्त करता है।

4. लावा एवं गैस काऊर्ध्वगमनन:

कारण भले ही कुछ भी हो लेकिन पृथ्वी के अन्दर लावा व गैस उत्पन्न हो जाते हैं और ये दोनों ही बाहर आने का प्रयास करते हैं। जहाँ पर्वतों का निर्माण हो रहा है वहाँ तथा दूसरे पतली कमजोर परत वाले स्थानों पर लावा ववाष्प बाहर निकल आते हैं, ज्वालामुखी का विस्फोट होता है।

5. प्लेट टैक्टॉनिक्स (विवर्तन) :

प्लेट विवर्तन भी ज्वालामुखी विस्फोट का कारण है। प्लेट विवर्तन क्रिया से लावा का निर्माण होता है। यह क्रिया मध्य सागरीय कटकों के सहारे अधिक होती है। दो प्लेट जब विपरीत दिशाओं में अग्रसर होते हैं तब दाब-मुक्ति के कारण कटक के नीचे ऊपरी मेंटल का भाग पिघल जाता है और लावा का रूप धारण कर लेता है और ज्वालामुखी विस्फोट का कारण बनता है। लावा की आपूर्ति कटक के नीचे ऊपरी मेटल के आंशिक रूप से पिघलने से होती रहती है। तभी तो कटक के सहारे ज्वालामुखी प्रायः फूटा करते है।

6. दबाव में कमी:

पृथ्वी के केन्द्र की तरफ जाने पर पदार्थों का दबाव लगातार बढ़ता जाता है। भू-गर्भ में ऊपरी परतों में अत्यधिक दबाव के कारण अत्यधिक तापमान होने पर भी चट्टानें ठोस अवस्था में रहती हैं। जब कभी भूगर्भिक हलचलों के कारण ऊपरी दबाव कम हो जाता है तो निचली चट्टाने पिघलने लगती हैं। इसके कारण आयतन में वृद्धि हो जाती है तथा मैग्मा कम दबाव वाली कमजोर परतों से बाहर निकलने का प्रयास करता है। इस प्रकार दबाव में कमी से ज्वालामुखी क्रिया सक्रिय होती है।

7. भू- असंतुलन

धरातल पर भू-आकृतिक प्रक्रमों के कारण क्षेत्रीय रूप से असंतुलन उत्पन्न होता है। इसका प्रभाव भूगर्भिक व्यवस्था पर पड़ता है। भूगर्भिक असंतुलन के कारण चट्टानों में गति, भूकम्प, वलन, भ्रंश आदि घटनाएँ होती हैं। संतुलन स्थापन के लिए मैग्मा का प्रवाह होता है। इस प्रकार भूगर्भिक क्षेत्रों में संरचनात्मक परिवर्तन होते हैं। इससे ज्वालामुखी क्रिया सक्रिय होती है। विश्व के अधिकतर ज्वालामुखी इसी कारण समस्थितिक असंतुलन वाले क्षेत्रों में ही पाए जाते हैं।

ज्वालामुखी के लाभ और हानि

ज्वालामुखी विस्फोट के लाभ

  1.  ज्वालामुखी विस्फोट हमारे ग्रह के मुख्य भाग की गर्मी को स्थिर करने में मदद करते हैं।
  2.  तरल लावा के सूखने की प्रक्रिया के बाद ज्वालामुखी विस्फोट भी नए भूमि रूपों का निर्माण करते हैं।
  3. लावा की राख का उपयोग विभिन्न उद्देश्यों के लिए किया जाता है।
  4. कभी-कभी ज्वालामुखी विस्फोट टीएनटी आदि की जगह प्राकृतिक विध्वंसक का काम करते हैं।
  5. लावा में विभिन्न खनिज होते हैं जो मौजूदा मिट्टी को समृद्ध करते हैं।

ज्वालामुखी विस्फोट के नुकसान

  1. यह बहुत विनाश करता है।
  2. ज्वालामुखी विस्फोट से हानिकारक गैसें भी निकलती हैं।
  3. लावा गर्मी ग्लोबल वार्मिंग के लिए एक बूस्टर के रूप में कार्य करती है।
  4. लावा प्रवाह अक्सर कई मौतों का कारण बनता है।
  5. लावा के प्रवाह से अक्सर आसपास के जंगलों में आग लग जाती है।

ज्वालामुखी के प्रकार (Type of Volcano) 

इन्हें चार प्रकारों में बांटा गया है:

सिंडर कोन

समग्र ज्वालामुखी

शील्ड ज्वालामुखी

लावा ज्वालामुखी

सिंडर कोन: 

ये सबसे सरल प्रकार के ज्वालामुखी हैं। वे तब होते हैं जब ज्वालामुखी के वेंट से लावा के कण और बूँदें बाहर निकलती हैं। लावा हिंसक रूप से हवा में उड़ाया जाता है, और टुकड़े वेंट के चारों ओर बरसते हैं। समय के साथ, यह एक गोलाकार या अंडाकार आकार का शंकु बनाता है, जिसके शीर्ष पर एक कटोरे के आकार का गड्ढा होता है। सिंडर कोन ज्वालामुखी शायद ही कभी अपने परिवेश से लगभग 1,000 फीट ऊपर बढ़ते हैं।

समग्र ज्वालामुखी: 

समग्र ज्वालामुखी पृथ्वी के सबसे भव्य पर्वतों में से कुछ हैं, और उन्हें स्ट्रैटोज्वालामुखी भी कहा जाता है। वे आम तौर पर लावा प्रवाह, खड़ी-किनारे, ज्वालामुखी राख, ब्लॉक, बम और सिंडर की वैकल्पिक परतों से बने बड़े आयाम के सममित शंकु होते हैं और उनके ठिकानों से 8,000 फीट ऊपर उठ सकते हैं।

शील्ड ज्वालामुखी: 

एक ढाल ज्वालामुखी एक प्रकार का ज्वालामुखी है जो आमतौर पर लगभग पूरी तरह से तरल लावा प्रवाह से निर्मित होता है। उनके पास बहुत ही कोमल ढलान हैं और क्षैतिज रूप से विकसित होते हैं। शील्ड ज्वालामुखियों का निर्माण प्रवाही विस्फोटों से होता है, जो सभी दिशाओं में बहते हैं। उनके पास लगभग कभी भी हिंसक विस्फोट नहीं होते हैं, मूल लावा बस बहते हैं।

लावा ज्वालामुखी: 

लावा डोम चौथे प्रकार के ज्वालामुखी हैं जिनके बारे में हम चर्चा करने जा रहे हैं। मिश्रित और ढाल वाले ज्वालामुखियों के विपरीत, लावा गुंबद छोटे कद के होते हैं। वे तब बनते हैं जब लावा इतना चिपचिपा होता है कि बहुत दूर तक प्रवाहित नहीं हो पाता है।

जैसे-जैसे लावा का गुंबद धीरे-धीरे बढ़ता है, बाहरी सतह ठंडी होती जाती है और सख्त होती जाती है क्योंकि अंदर लावा जमा होता रहता है। आखिरकार, आंतरिक दबाव बाहरी सतह को चकनाचूर कर सकता है, जिससे ढीले टुकड़े उसके किनारों पर फैल जाते हैं। आम तौर पर, ऐसे लावा गुंबद बड़े मिश्रित ज्वालामुखियों के किनारों पर पाए जाते हैं।

ज्वालामुखी क्रिया द्वारा निर्मित स्थलाकृति

ज्वालामुखी क्रिया द्वारा निर्मित भूस्थलाकृति स्थायी रूप वाली नहीं होती क्योंकि प्रत्येक आकृति का रूप ज्वाला तथा विखण्डित पदार्थ की मात्रा के अनुपात से बदलता रहता है। जब उद्गार विस्फोट के साथ होता है तो विखण्डित पदार्थ व धूल अधिक होती है जिससे राख शंकु या सिडर कोण की रचना होती है और जब उद्गार शांत होता है तो लावा की अधिकता के कारण लावा पठार, लावा मैदान या गुम्बद की रचना होती है।

चूँकि ज्वालामुखी का क्षेत्र स्थल के बाहर व भीतर दोनों स्थानों पर होता है, अतः ज्वालामुखी द्वारा निर्मित भू-आकृतियों को अग्र रूप में विभाजित किया जाता है

केन्द्रीय विस्फोट द्वारा निर्मित स्थलाकृति

केन्द्रीय उद्गार द्वारा पर्याप्त मात्रा में लावा तीव्र गैस तथा विखण्डित पदार्थ ज्वालामुखी विस्फोट के समय बाहर निकलते हैं जिससे कुछ भाग ऊँचा उठ जाता है व कुछ भाग नीचे धँस जाता है। इस प्रकार निकले पदार्थ के जमाव से शंकु के रूप में स्थलाकृति निर्मित हो जाती है। भू-आकारों में क्रेटर, काल्डेरा शंकु प्रमुख हैं जिन्हें धंसे हुए भाग कहते हैं।

(i) मिश्रित शंकु :

एक ज्वालामुखी से समय-समय पर निकलने वाले पदार्थ में लावा, राख तथा प्रचार शैल की एक के बाद एक परत जमती रहती है, इन्हें मिश्रित शंकु व स्तरि शंकु कहते हैं। इस प्रकार के शंकु का ढाल धरातल से 35° तथा 40° तक होता है। इनमें संयुक्त राज्य अमेरिका का शल्ता, हुड़, फिलिपाइन का मैदान तथा जापान का फ्यूजियामा प्रमुख हैं।

(ii) सिंडर शंकु :

ये शंकु कम ऊँचे होते हैं जिनका निर्माण ज्वालामुखी से निकले धूल, राख तथा अन्य विखण्डित पदार्थों के योग से होता है। इन शंकुओं का ऊपरी आवरण राख से ढँका होता है इसलिए इन्हें ‘सिडर शंकु’ कहते हैं। प्रारम्भ में ये शंकु 2″ से 3″ ऊँचे होते हैं परन्तु धीरे-धीरे निस्सृत पदार्थों का जमाव होता है जिससे निचले भाग में पंख बन जाते हैं। इन शंकुओं का ढाल धरातल से 30° से 45° तक होता है। इनमें मैक्सिको का जोरल्ली, फिलिपाइन के लूजोन द्वीप का ‘कैमिग्विज’ प्रमुख उदाहरण है।

(iii) परिपोषित शंकु :

ज्वालामुखी में अधिक विस्तार से फटन आ जाने के कारण ज्वालामुखी नली से छोटी-छोटी उपशाखाएँ निकल आती हैं जिससे निकले पदार्थ का जमाव होने से इन शंकुओं की नली का पोषण ज्वालामुखी की मुख्य नली से होता है, अत: इन्हें परिपोषित शंकु कहते हैं।

(iv) बैसिकलावा शंकु :

जब लावा काफी पतला होता है तथा सिलिका की मात्रा कम होती है तो लावा काफी दूरी में फैल जाता है और एक लम्बे समय के बाद छोटे शंकु का निर्माण होता है। इसका आकार शील्ड के जैसा होता है अत: इन्हें शील्ड शंकु अथवा वाइन प्रकार का शंकु भी कहते हैं।

(v) एसिड लावा शंकु :

जब ज्वालामुखी से निकला लावा काफी गाढ़ा व चिपचिपा होता है तथा सिलिका की मात्रा अधिक होती है तो लावा बाहर निकलते ही धरातल पर शीघ्र जम जाता है जिससे इसे फैलने को समय नहीं मिलता। फलस्वरूप तीव्र ढाल वाले शंकु का निर्माण होता है। इसे स्ट्राम्बोली प्रकार का शंकु कहते हैं।

(vi) लावा गुम्बद 

लावा गुम्बद शील्ड शंकु के समान ही होता है, अन्तर इतना होता है कि यह विस्तृत होता है तथा इसका ढाल तीव्र होता है। ‘गुम्बद’ ज्वालामुखी छिद्र के चारों ओर लावा के जमाव से बनता है। उत्पत्ति के आधार पर गुम्बद को डाट गुम्बद, आन्तरिक गुम्बद तथा बाह्य गुम्बद तीन भागों में बाँटा गया है।

volcano in hindi जब ज्वालामुखी नली लावा के जम जाने से भर जाती है तो शंकु के अपरदन द्वारा नष्ट हो जाने से वह नली में जमा लावा दीवार की तरह दिखाई देता है। इस प्रकार प्लग से नली पूरी तरह से भर जाती है तो उसे ज्वालामुखी ग्रीवा कहते हैं। इसकी औसत ऊँचाई 2000 फीट तक पाई जाती है तथा इसका व्यास 1000 से 2000′ बेलनाकार होता है। ब्लैक हिल्स व डेविस टावर इसके प्रमुख उदाहरण हैं।

ज्वालामुखी छिद्र के भर जाने से बने आकार को ‘ज्वालामुखी डाट’ कहते हैं।

(vii) आभ्यान्तरिक स्थलाकृति

ज्वालामुखी उद्गार के समय गैस एवं वाष्प में तीव्रता से कमी हो जाने के कारण लावा धरातल के ऊपर न आकर भीतर ही दरारों में जमा होकर ठोस रूप में जम जाता है जिससे धरातल के अन्दर निम्न प्रकार के स्थल रूप बनते हैं—बेथोलिथ, लैकोलिथ, फैकोलिथ, लोपोलिथ, सिल और डाईक |

विश्व के कुछ प्रमुख ज्वालामुखी‌

माउंट विसुवियस

यह कई ज्वालामुखियों में से एक है जो कैम्पैनियन ज्वालामुखीय चाप बनाते हैं। विसुवियस में एक बड़ा शंकु है जो आंशिक रूप से एक शिखर काल्डेरा के खड़ी रिम से घिरा हुआ है जिसका निर्माण पहले की मूल संरचना के पतन के कारण होता है। 79 ईस्वी में माउंट वेसुवियस के विस्फोट ने पोम्पेई, हरकुलेनियम, ओप्लोंटिस और स्टैबिया के रोमन शहरों के साथ-साथ कई अन्य बस्तियों को नष्ट कर दिया

पिको देल तेइदे

पिको देल तेइदे एक प्रमुख ज्वालामुखी हैं यह कैनरी द्वीप के टेनराइफ (तेनरीफ़) में स्थित है और स्पेन में सबसे बड़ा पहाड़ है। 2007 में इसे विश्व विरासत घोषित किया गया।। पहाड़ द्वीप के प्राचीन निवासियों को पवित्र किया गया था (गुआंचे)।

माउण्ट एटना

मांउट एटना यूरोप महाद्वीप के इटली में सिसली द्वीप पर स्थित एक ज्वालामुखी है। यह यूनेस्को की विश्व धरोहरों में शामिल है।

माउण्ट सेण्ट हेलेन्स

यह एक प्रमुख ज्वालामुखी हैं।18 मई, 1980 को माउंट सेंट हेलेंस अपने प्रमुख विस्फोट के लिए सबसे कुख्यात है, जो अमेरिकी इतिहास में सबसे घातक और सबसे अधिक आर्थिक रूप से विनाशकारी ज्वालामुखी घटना है। पचहत्तर लोग मारे गए; 250 घर, 47 पुल, रेलवे के 15 मील (24 किमी), और 185 मील (298 किमी) राजमार्ग नष्ट हो गए

मोनालोआ

मोनालोआ एक सक्रिय ज्वालामुखी है। यह संयुक्त राज्य अमेरिका के हवाई में 5 ज्वालामुखियों में से एक है।

भारत के ज्वालामुखी (Volcano in India)

बैरन द्वीप

बैरन द्वीप भारत का एकमात्र सक्रिय ज्वालामुखी है। यह द्वीप लगभग 3 किलोमीटर में फैला है। यहां का ज्वालामुखी 28 मई 2005 में फटा था। तब से अब तक इससे लावा निकल रहा है।

बैरन द्वीप (लाल घेरे में) दिखाते हुए अंडमान द्वीपसमूह का मानचित्र यह अंडमान निकोबार द्वीप समूह की राजधानी पोर्ट ब्लेयर से लगभग 138 किलोमीटर उत्तर पूर्व में बंगाल की खाडी में स्थित है|

नर्कोन्दम द्वीप

भारत के अण्डमान और निकोबार द्वीपसमूह केन्द्रशासित प्रदेश में अण्डमान द्वीपसमूह का एक द्वीप है। नर्कोन्दम भारत का पूर्वतम द्वीप है। इसकी मुख्य चोटी समुद्र स्तर से लगभग 710 मीटर की उंचाई पर है। इस द्वीप को अण्डमान और निकोबार द्वीपसमूह का हिस्सा माना जाता है।

यह द्वीप सैकड़ों वर्षों से शांत है अर्थात नारकोंडम द्वीप में कोई ज्वालामुखी सक्रियता नहीं होती है इसलिए इसे सुसुप्त ज्वालामुखी कहा जाता है।

दकन ट्रैप्स

दकन ट्रैप भारत के पश्चिमी हिस्से में एक प्रदेश है जहाँ की भूवैज्ञानिक संरचना क्रीटाशियस युग के ज्वालामुखी उद्भेदन के दौरान बनी बेसाल्ट चट्टानेें है और इस इलाके में बेसाल्ट के ऊपर बनी काली रेगुर मिट्टी पायी जाती है। जिसमे कपास की खेती अच्छी होती है इसलिए इसे ‘कपास मिट्टी’ भी कहते है।

बरतंग आइलैंड

जिसे बाराटाँग द्वीप के नाम से भी जाना जाता है भारत के अण्डमान द्वीपसमूह का एक द्वीप है और इसका क्षेत्रफल लगभग 238 वर्ग किलोमीटर है।

धिनोधर हिल्स

धिनोधर पहाड़ियाँ (Dhinodhar Hills) भारत के गुजरात राज्य के कच्छ ज़िले में नानी अरल ग्राम के समीप स्थित कुछ पहाड़ियाँ हैं। यह एक पर्यटन स्थल और तीर्थस्थान है। सबसे ऊँची चोटी पर एक मंदिर स्थित है।

धोसी हिल

अरावली पर्वत शृंखला के अंतिम छोर पर उत्तर-पश्चिमी हिस्से में एक सुप्त ज्वालामुखी है, जिसे धोसी पहाड़ी के नाम से जाना जाता है। यह उत्तरी अक्षांश 28*03’39.47″ और पूर्वी देशान्तर 76*01’52.63″ पर स्थित इकलौती पहाड़ी है, जो कई महत्वपूर्ण और रहस्यमयी कारणों से चर्चित रहती है। इस पहाड़ी का उल्लेख विभिन्न धार्मिक पुस्तकों में भी मिलता है जैसे महाभारत, पुराण आदि।

Conclusion

हमने इस आर्टिकल की मदद से जाना कि ज्वालामुखी क्या है, volcano in hindi, ज्वालामुखी के प्रकार,ज्वालामुखी के लाभ और हानि आदि के बारे आपको जानकारी मिली ।

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ज्वालामुखी क्या है -volcano in hindi,ज्वालामुखी के प्रकार@ 2022



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नमस्कार दोस्तों, मैं अमजद अली, Achiverce Information का Author हूँ. Education की बात करूँ तो मैंने Graduate B.A Program Delhi University से किया हूँ और तकनीकी शिक्षा की बात करे तो मैने Information Technology (I.T) Web development का भी ज्ञान लिया है मुझे नयी नयी Technology से सम्बंधित चीज़ों को सीखना और दूसरों को सिखाने में बड़ा मज़ा आता है. इसलिए मैने इस Blog को दुसरो को तकनीक और शिक्षा से जुड़े जानकारी देने के लिए बनाया है मेरी आपसे विनती है की आप लोग इसी तरह हमारा सहयोग देते रहिये और हम आपके लिए नईं-नईं जानकारी उपलब्ध करवाते रहेंगे

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