Climate Change essay in hindi
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Climate Change essay in hindi
आज पूरी दुनिया एक बहुत बड़ी समस्या का सामना कर रहा है। इस समस्या के बुरे परिणाम धीरे-धीरे पूरी दुनिया के सामने आ रहे हैं। यह समस्या है Climate Change। आज के समय में जलवायु परिवर्तन के वैश्विक तथा क्षेत्रीय प्रभाव के कारण यह एक महत्वपूर्ण और विचार करने वाला मुद्दा बना हुआ है। इसके परिणाम के कारण विश्व के अनेक देशों का संसार के मानचित्र से अस्तित्व खत्म हो जाने का खतरा उत्पन्न हो गया है।
Climate Change का क्या अर्थ है
Climate Change को समझने से पहले यह समझ लेना आवश्यक है कि जलवायु क्या होती है? सामान्यत: जलवायु का आशय किसी दिए गए क्षेत्र में लम्बे समय तक औसत मौसम से होता है। अत: जब किसी क्षेत्र विशेष के औसत मौसम में परिवर्तन आता है, तो उसे जलवायु परिवर्तन (Climate Change) कहते हैं। जलवायु परिवर्तन को किसी एक स्थान पर भी अनुभव किया जा सकता है और सम्पूर्ण वैश्विक परिदृश्य में भी। यदि वर्तमान सन्दर्भ में बात करें तो इसका वैश्विक प्रभाव दृष्टिगोचर होता है। Climate Change essay in hindi
Climate Change के कारण
जलवायु परिवर्तन के मुख्य दो प्रकार के कारण है जो कि इस प्रकार से है :-
1.प्राकृतिक कारण
महाद्वीपों का अलग होना
महाद्वीपों का निर्माण तब हुआ था जब लाखों वर्ष पूर्व धरती का एक बड़ा हिस्सा धीरे-धीरे अलग होना शुरू हुआ। इस अलगाव का जलवायु पर भी प्रभाव पड़ा, क्योंकि इसने धरती, उसकी अवस्थिति तथा जलमण्डलों की भौतिक विशेषताओं को परिवर्तित कर दिया। धरती के विखण्डन ने महासागरीय धाराओं तथा पवनों के प्रवाह को भी परिवर्तित कर दिया, जिसका प्रभाव जलवायु पर पड़ा। महाद्वीपों का यह पृथक्करण आज भी जारी है। हिमालयी श्रेणी प्रत्येक वर्ष करीब एक मिमी. तक दक्षिण की दिशा में खिसकती जा रही है।
ज्वालामुखी
ज्वालामुखी विस्फोट से काफी मात्रा में सल्फर डाइऑक्साइड (SO.), सल्फर ट्राइऑक्साइड (SO,), क्लोरीन (CIL), जलबाष्प, धूलकण तथा राख चायुमण्डल में बिखरकर फैल जाते हैं। यद्यपि ज्वालामुखी गतिविधियाँ कुछ दिनों की ही होती हैं, लेकिन उससे भारी मात्रा में निकलने वाली गैसे तथा राख कई वर्षों तक जलवायु पैटर्न को प्रभावित करते हैं।
महासागरीय धाराएँ
महासागर जलवायु व्यवस्था के महत्त्वपूर्ण घटक होते हैं। ये पृथ्वी के लगभग 71% भाग पर फैले हैं। वायुमण्डल अथवा पृथ्वी द्वारा सूर्य के विकिरण का जितना अवशोषण किया जाता है, ये उससे दोगुना अवशोषित करते हैं। यही कारण है कि जलवायु के निर्धारण में इनका महत्त्वपूर्ण योगदान होता है। समय-समय पर महासागर अपना ताप बायुमण्डल में छोड़ता है, जिससे जलबायु प्रभावित होती है। अत्यधिक ताप जलबाष्प के रूप में पृथ्वी पर ग्रीन हाउस गैस के प्रभाव को बढ़ाता है। इस प्रकार महासागरीय धाराएँ भी जलवायु को प्रभावित करने में योगदान देती हैं।
मीथेन गैस (CH)
आर्कटिक क्षेत्र नासा के वैज्ञानिकों के एक दल द्वारा आर्कटिक के बातावरण का कई स्तरों पर अध्ययन करके यह निष्कर्ष निकाला है कि आर्कटिक के नीचे एक खतरनाक ग्रीन हाउस गैस मीथेन का विशाल भण्डार है, जो आर्कटिक पर जमी बर्फ को पिघला रहा है। इस गैस से बातावरण भी तप्त हो रहा है। बर्फ में पड़ रही दरारों से मीथेन पानी में घुलकर हवा के सम्पर्क में आ रही है, जिससे आर्कटिक क्षेत्र के साथ-साथ वैश्विक स्तर पर भी तापमान में वृद्धि हो रही है।
ग्रीन हाउस प्रभाव
ग्रीन हाउस गैस प्रभाव एक ऐसी समस्या है, जिसके द्वारा पृथ्वी का वायुमण्डल गुजरते हुए सूर्य के प्रकाश से कार्बन-डाइऑक्साइड जलवाष्प तथा मीथेन जैसी गैसों की उपस्थिति में सौर विकिरण को न केवल अपने अन्दर समाहित कर लेता है, बल्कि उस ताप को भी अवशोषित कर लेता है, जो पृथ्वी की सतह तथा निचले बातावरण को सामान्य से अधिक गर्म कर देता है।
जलवाष्प (H. O) तथा कार्बन-डाइऑक्साइड (CO, ) ग्रीन हाउस गैसों में प्रमुख हैं। मीथेन (CH), नाइट्रस ऑक्साइड (NO), क्लोरोफ्लोरो कार्बन (CFC) तथा अन्य ग्रीन हाउस गैसे बहुत ही निम्न मात्रा में मौजूद हैं, लेकिन अपने कई गुना ताप अवशोषक गुणों एवं वायुमण्डल में दीर्घावधि तक बने रहने के गुणों के कारण इनका ताप प्रभाव भी काफी अधिक होता है।
कृषि
जलवायु परिवर्तन में कृषि से जुड़े क्रिया-कलापों की भी महत्त्वपूर्ण भूमिका है। आज हम परम्परागत खेती के स्थान पर आधुनिक खेती की तरफ उन्मुख हैं। कृषि क्षेत्र में रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग अत्यधिक बढ़ गया है। जलयुक्त धान के खेत की जुताई से मीथेन का उत्सर्जन होता है। जुगाली करने वाले पशु भी मीथेन का उत्सर्जन करते हैं। इससे ग्रीन हाउस गैस प्रभाव में वृद्धि होती है।
जीवाश्म ईंधन का प्रयोग
जीवाश्म आधारित ईंधन के दोहन से भी कार्बन-डाइऑक्साइड एवं नाइट्रोजन-डाइऑक्साइड जैसी गैसों का उत्सर्जन बढ़ा है। इस मानवजनित उत्सर्जन से भी जलवायु परिवर्तन की समस्या विकराल हुई है। जीवाश्म आधारित ईंधन के दहन से जहाँ ग्रीन हाउस गैसों का संचयन बढ़ा है, वहीं वायु एवं जल प्रदूषण भी बढ़ा है। अम्लीकरण भी इसी का नतीजा है। कार्बन-डाइऑक्साइड (CO) का सबसे ज्यादा उत्सर्जन जहाँ कोयले के दहन के कारण होता है, वहीं इस समय तेल का दहन बायु में 30% तक CO, का उत्सर्जन करता है।
शहरीकरण
शहरीकरण और औद्योगीकरण के कारण लोगों की जीवन-शैली में काफी परिवर्तन आया है। विश्वभर की सड़कों पर बाहनों की संख्या काफी अधिक हो गई है। जीवन शैली में परिवर्तन ने खतरनाक गैसों के उत्सर्जन में काफी अधिक योगदान दिया है।
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जलवायु परिवर्तन के प्रभाव
Climate Change का खतरा पूरे विश्व पर मण्डरा रहा है और इससे मानव जाति का अस्तित्व ही खतरे में पड़ गया है। इस परिवर्तन से मानव जीवन पर पड़ने वाले प्रभाव निम्न हैं
तापमान में वृद्धि
Climate Change के दौरान पृथ्वी का तापमान सामान्य से अधिक बढ़ रहा है। जिसका मानव जीवन व भौतिक पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। पृथ्वी पर सामान्य से अधिक तापमान बढ़ने के कारण विश्व के पर्वतों की चोटियों पर जमी बर्फ लगातार पिघल रही है। अनेक देशों की फसलों पर इस परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहे हैं। ऋतु परिवर्तन में असन्तुलन बन गया है, जिसके कारण मानव एवं पशु-पक्षियों पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है।
समुद्री जल स्तर में वृद्धि
जलवायु परिवर्तन के कारण ग्लेशियर पिघल रहे हैं। जिनका जल नदियों के द्वारा समुद्र में पहुँच रहा है, जिससे समुद्र के जल स्तर में वृद्धि हो रही है। जिसके प्रभाव से समुद्र के आस-पास के द्वीपों के डूबने का खतरा भी पैदा हो गया है। मालदीव, जैसे छोटे द्वीपीय देशों में रहने वाले लोग पहले से ही वैकल्पिक स्थलों की तलाश में हैं। एक अनुमान के अनुसार यदि समुद्री जल का स्तर 1 मीटर बढ़ जाए तो इससे भारत के 7.5 मिलियन लोग बेघर हो जाएंगे और बांग्लादेश का 35% भू-भाग जलमग्न हो जाएगा।
वर्षा के प्रारूप में परिवर्तन
विगत कुछ दशकों से बाद, सूखा, बारिश आदि की अनियमितता काफी बढ़ गई है। यह सभी जलवायु परिवर्तन के परिणमास्वरूप ही हो रहा है। कुछ स्थानों पर बहुत अधिक वर्षा हो रही है, जबकि कुछ स्थानों पर पानी की कमी से सूखे की सम्भावना बन गई है।
प्राकृतिक आपदाओं का खतरा
जलवायु परिवर्तन के कारण चरम घटनाओं की उत्पत्ति में होने वाली बढ़ोतरी भी मानव को सबसे ज्यादा प्रभावित करती है। चक्रवात, भू-स्खलन आदि घटनाएँ मानव जीवन को प्रभावित करती है। वर्तमान में मई, 2020 में आने वाले चक्रवात अम्फान तथा जून के निसर्ग को देखा जा सकता है, जिसने भारत के ओडिशा व पश्चिम बंगाल तथा गुजरात एवं मुम्बई को प्रभावित किया।
वन्यजीव प्रजाति को हानि
तापमान में अत्यधिक वृद्धि तथा बनस्पति पैटर्न में बदलाव ने कुछ पक्षी प्रजातियों को विलुप्त कर दिया है। विशेष्यों के अनुसार, पृथ्वी की एक चौथाई प्रजातियाँ वर्ष 2050 तक विलुप्त हो सकती है। वर्ष 2008 में ध्रुवीय भालू को उन जानवरों की सूची में रखा गया था जो समुद्री जल स्तर में वृद्धि के कारण विलुप्त हो सकते हैं।
रोगों का प्रसार और आर्थिक हानि
जलवायु परिवर्तन के परिणामस्वरूप भविष्य में मलेरिया और डेंगू जैसी बीमारियाँ और बढ़ेंगी तथा इन्हें नियन्त्रित करना मुश्किल होगा। WHO के आँकड़ों के अनुसार पिछले दशक से अब तक हीट बेब्स (Heat Waves) के कारण लगभग 2,00,000 लोगों की मृत्यु हो चुकी है।
जंगल में आग की बारम्बारता में वृद्धि
जलवायु परिवर्तन के कारण लम्बे समय तक चलने वाली हीट बेस (Heat Waves) ने जंगलों में लगने वाली आग के लिए उपयुक्त गर्म और शुष्क परिस्थितियाँ पैदा की हैं। ब्राजील स्थित नेशनल इन्स्टीट्यूट फॉर स्पेस रिचर्स (National Institute for Space Research) के आँकड़ों के अनुसार जनवरी, 2019 से अब तक ब्राजील में अमेजन के जंगलों में कुल 74, 155 बार आग लग चुकी है। वर्तमान समय में ऑस्ट्रेलिया के जंगलों में लगी भयंकर आग भी जलवायु परिवर्तन से होने वाले प्रभाव को स्पष्ट करती है।
जलवायु परिवर्तन के दुष्परिणाम
- जलवायु परिवर्तन के कारण मानव जीवन पर अनेक प्रकार की आपदाएँ आने की सम्भावनाएँ बढ़ गई हैं। वर्तमान में जलवायु परिवर्तन के कुप्रभावों को स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। जलवायु परिवर्तन के निम्न दुष्परिणाम देखे जा सकते हैं
- समुद्री जल स्तर बढ़ने के कारण तटीय क्षेत्रों के निचले भागों के जलमग्न होने से तटीय बाढ़ का खतरा बढ़ जाएगा जिसके परिणामस्वरूप तटीय क्षेत्रों को खाली करना पड़ेगा।
- जलवायु परिवर्तन के कारण मरुस्थलों का फैलाब एक बड़ी समस्या के रूप में उभरा है।
- पहले से ही पानी की समस्या झेल रहे क्षेत्रों में पानी की मात्रा में गिरावट आने के कारण अधिक समस्या उत्पन्न हो रही है।
- जलवायु परिवर्तन के कारण वर्षा की मात्रा में कमी आने से कृषि उत्पादन में कमी आई है, जिसके परिणामस्वरूप खाद्य फसलों में कमी आई है।
- खाथ फसलों तथा खाद्य पदार्थों की कमी के कारण लोग भुखमरी, कुपोषण आदि के शिकार हो रहे हैं, जिससे लोगों की असामयिक मृत्यु हो रही है।
- जलवायु परिवर्तन के कारण जानवरों तथा पौधों की अनेक प्रजातियाँ विलुप्त हो रही हैं।
- अधिक तापमान से मुक्ति पाने के लिए अतिरिक्त ऊर्जा के संसाधनों का उपयोग किया जा रहा है, जिसके कारण बातावरण में गैसों की सान्द्रता में वृद्धि हो रही है।
- हिमनदों के पिघलने से भू-स्खलन तथा हिमस्खलन की घटनाएँ सामान्य हो गई हैं।
वैश्विक स्तर पर जलवायु परिवर्तन से निपटने हेतु प्रयास
अत: जलबायु परिवर्तन आज वैश्विक समस्या बन गई है, जिसके लिए प्रयास पिछले कई वर्षों से किए जा रहे हैं; जैसे- जलवायु परिवर्तन पर निगरानी हेतु अन्तर्सरकारी पैनल (IPCC) की स्थापना वर्ष 1988 में यूनाइटेड नेशन्स इन्वायरमेण्ट प्रोग्राम (UNEP) एवं वर्ल्ड मेट्रोलॉजिकल ऑर्गेनाइजेशन (WMO) के द्वारा की गई, ताकि विश्व की सरकारों को इस सम्बन्ध में एक स्पष्ट वैज्ञानिक दृष्टिकोण उपलब्ध कराया जा सके।
IPCC नियमित रूप से जलवायु परिवर्तन के बारे में वैज्ञानिक रिपोर्ट, जिसे मूल्यांकन रिपोर्ट के नाम से जाना जाता है, जारी करता है। आईपीसीसी ने अपनी पहली आकलन रिपोर्ट वर्ष 1990 में जारी की थी, जिसमें जलवायु परिवर्तन को एक चुनौती के रूप में रेखांकित किया गया तथा इसके परिणामों का सामना करने हेतु अन्तर्राष्ट्रीय समन्वय की आवश्यकता पर बल दिया गया।
जलवायु परिवर्तन पर आईपीसीसी ने अपनी पाँचवीं रिपोर्ट वर्ष 2014 में प्रस्तुत की, जिसमें अनुमान लगाया गया कि यदि ग्रीन गैसों का उत्सर्जन बढ़ेगा तो वैश्विक तापमान में वृद्धि होगी। इसलिए इसे वर्ष 2020 तक नियन्त्रित करने की सिफारिश की गई। IPCC ने वर्ष 2019 में एक नई रिपोर्ट जारी की, जिसमें भूमि और जलवायु परिवर्तन पर समग्रता से विश्लेषण प्रस्तुत किया गया। जलवायु परिवर्तन से सम्बन्धित कई वैश्विक सम्मेलन भी हुए हैं, जिनमें कुछ महत्त्वपूर्ण सम्मेलनों की व्याख्या इस प्रकार है
रियो डी जेनरो सम्मेलन
संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा ब्राजील की राजधानी रियो डी जेनरो में वर्ष 1992 में पर्यावरण और विकास सम्मेलन आयोजित किया गया। इसे पृथ्वी शिखर सम्मेलन भी कहा जाता है। इसमें ‘सतत विकास’ का नारा दिया गया और विकास एवं पर्यावरण संरक्षण के मध्य तालमेल की बात करते हुए व्यापक कार्रवाई योजना के रूप में एजेण्डा 21 स्वीकृत किया गया।
क्योटो प्रोटोकाल समझौता
इसके पश्चात् वायुमण्डल में ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करने हेतु अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर एक महत्त्वपूर्ण समझौता किया गया, जिसे क्योटो प्रोटोकाल के नाम से जाना गया। इसकी उद्घोषणा वर्ष 1997 में की गई थी।
मॉण्ट्रियल सम्मेलन
वर्ष 2005 में मॉण्ट्रियल सम्मेलन हुआ, जिसमें वर्ष 2012 तक ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करके वर्ष 1990 के स्तर तक लाने, पर्यावरण कोष बनाने आदि पर सहमति बनी।
कानकुन सम्मेलन
जलवायु परिवर्तन पर वर्ष 2010 में कानकुन सम्मेलन हुआ, जिसमें विकसित देशों के साथ विकासशील देशों ने वर्ष 2020 तक ग्रीन हाउस गैसों में 20-25% कटौती करने पर सहमति जताई।
रियो +20 का आयोजन
वर्ष 2012 में ब्राजील के रियो डी जेनेरियो में रियो +20 का आयोजन किया गया। इसमें ग्रीन इकॉनोमी को अधिक महत्त्व दिया गया। इसके साथ ही पर्यावरण को स्वच्छ रखते हुए समष्टि अर्थव्यवस्था तथा सतत पोषणीय विकास को अपने उद्देश्य में शामिल किया गया।
पेरु जलवायु सम्मेलन
वर्ष 2014 में पेरु की राजधानी लीमा में जलवायु सम्मेलन सम्पन्न हुआ, जिसमें 194 देशों ने वैश्विक कार्बन उत्सर्जन में कटौती के लिए आम सहमति वाला प्रारूप स्वीकार किया।
पेरिस सम्मेलन
वर्ष 2015 में फ्रांस की राजधानी पेरिस में सम्पन्न हुए 21वें जलवायु सम्मेलन में विश्व के 196 देशों ने धरती के बढ़ते तापमान तथा कार्बन उत्सर्जन पर अंकुश लगाने वाले समझौते को स्वीकार किया। इसमें यह स्वीकार किया गया कि पूर्व औद्योगिक युग की तुलना में इस शताब्दी की वैश्विक ताप वृद्धि को 2°C से कम रखना है। यह समझौता वर्ष 2020 से प्रभावी होगा।
जलवायु सम्मेलन जर्मनी
नबम्बर 2017 में 23वाँ जलवायु सम्मेलन जर्मनी के बॉन शहर में हुआ। इसमें पेरिस जलवायु सम्मेलन के लक्ष्यों को पूरा करने हेतु कार्य योजना पर चर्चा हुई।
स्पेन सम्मेलन
सितम्बर, 2019 में 25 वाँ जलवायु परिवर्तन सम्मेलन स्पेन के मैड्रिड शहर में हुआ। इस सम्मेलन में भी जलवायु परिवर्तन के नकारात्मक प्रभावों पर चर्चा तो हुई, किन्तु किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुँचा जा सका, केवल यूरोपीय संघ ने यह आश्वासन दिया कि वह 2050 तक जलवायु परिवर्तन निरपेक्ष हो जाएगा।
छात्रों एवं युवाओं का प्रयास
2019 विश्व में जलवायु परिवर्तनों से रक्षा हेतु छात्रों एवं युवाओं के सबसे बड़े प्रदर्शनों का वर्ष था। स्वीडन की मात्र 16 वर्ष की ग्रेटा धर्नवर्ग के हर शुक्रवार को स्कूल जाने के बदले सड़कों पर जाकर करने वाले ‘फ्राइडेज फॉर फ्यूचर’ नाम के प्रदर्शनों ने दुनिया को झकझोर दिया।
जलवायु परिवर्तन से होने वाले दुष्प्रभावों के बारे में विचार-विमर्श एवं नीतियों के क्रियान्वयन के बारे में चर्चा करने हेतु 26वाँ संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन 2020 में ब्रिटेन के ग्लासगो शहर में आयोजित किया जाना था, किन्तु Covid-19 के कारण इसे वर्ष 2021 तक स्थगित कर दिया गया है।
Climate Change भारत के प्रयास
भारत द्वारा वर्ष 2008 में जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्ययोजना (NAPCC) का शुभारम्भ किया गया, जिसका उद्देश्य जनता के प्रतिनिधियों, सरकार की विभिन्न एजेन्सियों, वैज्ञानिकों, उद्योगों और समुदायों को जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न खतरे और इससे मुकाबला करने के उपायों के बारे में जागरूक करना है। इस कार्य योजना में मुख्यतः 8 मिशन शामिल हैं
- राष्ट्रीय सौर मिशन।
- विकसित ऊर्जा दक्षता के लिए राष्ट्रीय मिशन।
- सुस्थिर निवास पर राष्ट्रीय मिशन।
- राष्ट्रीय जल मिशन।
- सुस्थिर हिमालयी पारिस्थितिकी तन्त्र हेतु राष्ट्रीय मिशन
- हरित भारत हेतु राष्ट्रीय मिशन।
- सुस्थिर कृषि हेतु राष्ट्रीय मिशन।
- जलवायु परिवर्तन हेतु रणनीतिक ज्ञान पर राष्ट्रीय आयोग।
इसके अतिरिक्त भारत के राज्यों और केन्द्रशासित प्रदेशों द्वारा जलवायु परिवर्तन पर राज्य की कार्य योजना (SAPCC) तैयार की गई है, जो जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना (NAPCC) के उद्देश्यों के ही अनुरूप है। जलवायु परिवर्तन से निपटने हेतु प्रयासों के अन्तर्गत भारत में एक अन्तर्राष्ट्रीय सौर गठबन्धन की शुरुआत हुई है। इस सौर गठबन्धन की शुरुआत भारत और फ्रांस ने 30 नवम्बर, 2015 को पेरिस जलवायु सम्मेलन के दौरान की थी। इसका मुख्यालय गुरुग्राम (हरियाणा) में है। अन्तर्राष्ट्रीय सौर गठबन्धन का प्रमुख उद्देश्य वैश्विक स्तर पर 1000 गीगावाट से अधिक सौर ऊर्जा उत्पादन क्षमता प्राप्त करना और 2030 तक सौर ऊर्जा में निवेश के लिए लगभग 8 1000 बिलियन की राशि को जुटाना शामिल है।
पेरिस समझौते को बल देने के लिए संयुक्त राष्ट्र में 23 सितम्बर, 2019 को आयोजित जलवायु आपदा शिखर सम्मेलन में भारतीय प्रधानमन्त्री ने कहा कि भारत 2022 तक अक्षय ऊर्जा को बढ़ाकर 450 मेगावाट करेगा। साथ ही वर्ष 2030 तक देश के सकल घरेलू उत्पाद में 30-35% कार्बन उत्सर्जन कम करेगा तथा वर्ष 2030 तक गैर-जीवाश्म ईंधन से 40% ऊर्जा प्राप्त करेगा।
अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर जलवायु परिवर्तन के नियमों के क्रियान्वयन के सम्बन्ध में विकसित एवं विकासशील देशों के मध्य विवाद भी पाया जाता है। उदाहरणस्वरूप कार्बन उत्सर्जन, क्लोरोफ्लोरो कार्बन उत्सर्जन आदि के नियन्त्रण में विकसित देश सभी को समान रूप से पालन करने की बात करते हैं, जबकि विकासशील देश इसमें छूट के साथ विकसित देशों पर इसे बढ़ाने का आरोप लगाते हैं। इस कारण भी निर्धारित लक्ष्य को प्राप्त करने में समस्या आती है। अत: जलबायु परिवर्तन के लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु सभी देशों को समन्ययपूर्वक लक्ष्योन्मुखी कार्यों को मिलकर करने की आवश्यकता है।
Conclusion
Climate Change essay in hindi उपरोक्त बातो से यह कहा जाए तो जलवायु परिवर्तन अब तक न टाली जा सकने वाली चुनौती के रूप में मानवता के सामने खड़ा है। जैसे-जैसे तापमान में वृद्धि होगी, वैसे-वैसे ही गम्भीर, व्यापक और न सुधारे जा सकने वाले असर सामने आएँगे। वैश्विक तापन न केवल खाद्य सुरक्षा के लिए संकट खड़ा करेगा वरन् जल, जंगल व जमीन पर आश्रित रहने वाले प्राणियों पर भी इसका प्रभाव प्रत्यक्ष रूप से दिखाई देगा।
Climate Change essay in hindi अत: अब समय आ गया है कि सम्पूर्ण विश्व जलवायु परिवर्तन की इस चुनौती के लिए एकजुट हो जाए, क्योंकि इसका प्रभाव देश एवं राष्ट्रीय सीमाओं में बँधा नहीं होगा, बल्कि समस्त मानवता खतरे में आ जाएगी। अभी भारत, चीन, ब्राजील जैसे देशों ने मिलकर फैसला किया है कि वे अपने स्तर पर कार्बन उत्सर्जन लक्ष्य तय करेंगे एवं उसे पूरा करने हेतु प्रतिबद्ध होंगे। ऐसा करने की विश्व के सभी देशों की आवश्यकता है तभी सतत विकास के साथ स्वच्छ वैश्विक जलवायु के लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकेगा।
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