शैल और खनिज, शैल खनिज की विशेषताऐ उनका आर्थिक महत्व,चट्टानों के प्रकार @2021

 दोस्तों आप का स्वागत है हमारे Achiverce Information में तो आज का हम आपको बताने जा रहे शैल एवं खनिज, शैल और खनिज क्या है, शैल और खनिज की विशेषताऐ उनका आर्थिक महत्व,चट्टानों के प्रकार एवं परिभाषा इन सभी विषय पर हमने इस पोस्ट में जानकारी देने का प्रयास किया है। 

शैल और खनिज

खनिज किसे कहते हैं?

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खनिज पृथ्वी को सम्पूर्ण पर्पटी का 98% भाग आठ पदार्थों जैसे-ऑक्सीजन सिलिकन, एल्यूमीनिय लौह तत्व कैल्शियम, सोडियम, पोटेशियम तथा मैगनीशियम से बना है तथा शेष भाग टायटेनियम,हाइड्रोजन, फास्फोर मैगनीज, सल्फर, कार्बन, निकिल एवं अन्य पदार्थों से बना है। 

खनिज एक ऐसा प्राकृतिक अकार्बनिक तत्त्व है जिसमें एक क्रमबद्ध परमाणविक संरचना निश्चित रासायनिक संघटन तथा भौतिक गुणधर्म होते हैं। खनिज का निर्माण दो या दो से अधिक तत्वों से मिलकर होता है। लेकिन कभी-कभी सल्फर, ताँबा, चाँदी, सोना, शेफाइट जैसे एक तत्त्वीय खनिज भी पाये जाते हैं। भूपर्पटी पर कम से कम 2000 प्रकार के खनिजों को  पहचाना गया है और उनको नाम दिया गया है।
पृथ्वी के नीचे पाया जाने वाला मैग्मा ही खनिजों का सबसे बड़ा मूल स्रोत है।

 कुछ शब्दों के भोगोलिक परिभाषा एवं अर्थ।

 

शैल या चट्टानें – एक या एक से अधिक खनिजों का मिश्रण जो स्थलमंडल का निर्माण करता है।


खनिज– भूपर्पटी से प्राप्त वह पदार्थ जिसमें चट्टानों के विपरीत साधारणतया एक विशेष प्रकार की रासायनिक संरचना होती है।

आग्नेय चट्टानें — मैग्मा और लावा के ठंडे और तोस होने से बनी चट्टानें आग्नेय चट्टानें होती हैं।

बैथोलिय—ये सबसे बड़े अंतर्वेधी चट्टानी पिंड होते हैं। जब पिघला हुआ मैग्मा एक बड़े भाग में एकत्र हो जाता है और उसकी अनेक पर्ने बन जाती हैं तो उसे वैथोलिथ कहते हैं।

लैकोलिथ—ये आग्नेय शैलों के विशाल पिंड होते हैं। इनका निर्माण धरातल के कुछ नीचे वलित > अवसादी चट्टानों के मध्य होता है। इनको हम पथभ्रष्ट ज्वालामुखी का एक विकृत रूप कह सकते हैं जो किसी कारणवश धरातल पर नहीं पहुंच पाता है।

डाइक —ये दीवार के समान खड़े आग्नेय चट्टानी पिंड हैं। जब धरातल के नीचे चट्टानों को दरारों में तरल मैग्मा भर जाता है और ठोस रूप धारण कर लेता है तो डाइक का निर्माण होता है। यह कठोर होता है।

अवसादी चट्टानें – नदी, हिमनदी, पवन आदि कारकों द्वारा लाए गए और एकत्र किए गए अवसादों से अवसादी चट्टानें बनती हैं।

रूपांतरित चट्टानें— अवसादी तथा आग्नेय चट्टानों का अधिक तापमान, दाब आदि द्वारा तथा भौतिक और रासायनिक गुणों में परिवर्तन से जब रूप बदल जाता है, तब उन्हें रूपांतरित चट्टानें कहते हैं।

लोइस —ये एक प्रकार की अवसादी चट्टानें हैं जो पवन द्वारा बारीक रेता (बालू) मरुस्थलों में एकत्र करने से “निर्मित होती हैं।

 

खनिजों के आधार पर उनकी भौतिक विशेषताएँ इस प्रकार से हैं ।


(i) क्रिस्टल का बाहरी रूप
-अणुओं की आंतरिक व्यवस्था द्वारा तय होती है-घनाकार, अष्टभुजाकार, षट्भुजाकर प्रिज्म आदि।

(ii) विदलन– सापेक्षिक रूप में समतल सतह बनाने के लिए निश्चित दिशा में टूटने की प्रवृत्ति अणुओं की आंतरिक व्यवस्था का परिणाम; एक या कई दिशा में एक दूसरे से कोई भी कोण बनाकर टूट सकते हैं।

(iii) विभंजन-अणुओं की आंतरिक व्यवस्था इतनी जटिल होती है कि अणुओं का कोई तल नहीं होता है; क्रिस्टल विदलन तल के अनुसार नहीं बल्कि अनियमित रूप से टूटता है।
(iv) चमक-रंग के बिना किसी पदार्थ की चमक प्रत्येक खनिज की अपनी चमक होती है जैसे-मेटैलिक, रेशमी, ग्लॉसी आदि।

(v) रंग-कुछ खनिजों के रंग उनकी परमाणविक संरचना से निर्धारित होते हैं जैसे-मैलाकाइट, एजुराइट, कैल्सोपाइराइट आदि तथा कुछ खनिजों में अशुद्धियों के कारण रंग आते हैं। उदाहरण के लिये अशुद्धियों के कारण क्वार्ट्ज का रंग सफेद, हरा, लाल या पीला हो जाता है।

(vi) धारियाँ– किसी भी खनिज के पिसने के बाद बने पाउडर का रंग खनिज के रंग का या किसी अन्य रंग का हो सकता है-मेलाकाइट का रंग हरा होता है, और उस पर धारियाँ भी हरी होती हैं, फ्लोराइट का रंग बैंगनी या हरा होता है,जबकि इस पर श्वेत धारियाँ होती हैं।

(vil) पारदर्शिता-पारदर्शी प्रकाश किरणें इस प्रकार आर-पार जाती हैं, कि वस्तु सीधी देखी जा सकती है; पारभासी : प्रकाश किरणें आर-पार होती हैं, लेकिन उनके विसरित हो जाने के कारण वस्तु देखी नहीं जा सकती; अपारदर्शी: प्रकाश किरणें तनिक भी आर-पार नहीं होंगी।

(viii) संरचना-प्रत्येक क्रिस्टल की विशेष अवस्था; महीन, मध्यम अथवा खुरदुरे पिसे हुए; तंतुयुक्त पृथक करने योग्य, अपसारी, विकिरणकारी।

(ix) कठोरता– सापेक्षिक प्रतिरोध का चिह्नित होना दस चुने हुए खनिजों में से दस तक की श्रेणी में कठोरता मापना ये खनिज है-1. टैक, 2. जिपाम, 3. फैलाइट, 4. फ्लोराइट, 5. ऐपेटाइट, 6. फैल्डस्पर, 7. क्वान, 8, टोपान, 9 कोरंडम 10. होरा उदाहरण के लिए इस तुलना में 2.5 है तथा काँच या चाकू की नोक 5.5 है।

(x) आपेक्षिक —भार-दो गई वस्तु का भार तथा मराबर आयतन के पानी के भार का अनुपात हवा एवं पानी में वस्तु का भार लेकर इन दोनों के अंतर से हवा में लिए गए भार से भाग दें।

कुछ प्रमुख खनिज और उनकी विशेषताएँ।

फेल्डस्मार —इसमें सिलिका,ऑक्सीजन, सोडियम,कैल्शियम, एल्यूमिनियम आदि तत्व शामिल हैं। पृथ्वी की पपेटी का आधा भाग इसी से बना है।

क्वार्ट्ज — ये रे और ग्रेनाइट का प्रमुख घटक है। इसमें सिलिका होती है। यह कठोर खनिज है और पानी में अघुलनशील होता है। इसका उपयोग रेडियो तथा रदार में होता है।
पाइराक्सीन —  इसमें कैल्शियम, एल्यूमिनियम, मैग्नीशियम, आयरन तथा सिलिका शामिल हैं। प्रायः यह उल्का पिंड में पाया जाता है। इसका रंग हरा या काला होता है।

एम्फीबोल — इसके तत्व एल्यूमिनियम, कैल्शियम, सिलिका आदि हैं। ये हरे और काले रंग का होता है। इसका उपयोग एसबेस्ट उद्योग में होता है।

माइका —  इसमें पोटेशियम, एल्यूमीनियम, मैग्नीशियम, लोह, सिलिका आदि तत्व होते हैं। विद्युत उपकरणों में इसका उपयोग होता है। मैग्नीशियम, लोह तथा सिलिका हरितोपल के प्रमुख तत्व होते हैं।

धात्विक खनिज—  इनमें धातु तत्व होते हैं। इनको तीन प्रकारों विभाजित किया जा सकता है
(क) बहुमूल्य धातु
(ख) लौह धातु
(ग) अलौह धातु जैसे-ताम्र सीसा, जिंक, टिन, एल्यूमिनियम आदि।

अधात्विक खनिज — इनमें धातु के अंश उपस्थित नहीं होते। गंधक, फास्फेट तथा नाइट्रेट अधात्विक खनिज है। सीमेंट अधात्विक खनिजों का मिश्रण है।

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खनिजों के भौतिक गुण बताइये।


खनिजों की पहचान उनके रंग, कठोरता, परिवर्तित प्रकाश तथा घनत्व से होती है। खनिजों के भौतिक गुण निम्नलिखित हैं:

1. कणों की बनावट— कणों की बनावट के आधार पर उनकी पहचान की जाती है।

2. खनिजों के टूटने का ढंग -खनिजों में आन्तरिक अणु की बनावट और बाहरी कण की बनावट में संबंध होता है। खनिजों में टूटने की सतह होती है जिससे वे टूट जाते हैं।

3. भार — प्रत्येक खनिज का अपना विशेष भार होता है जिससे वे पहचाने जाते हैं। खनिजों की विशेष भारता इसका गुण होती है जिसके आधार पर खनिज का महत्त्व बढ़ता है।

4. कठोरता – खनिजों की कठोरता का भूगर्भिक महत्त्व है जिससे ये अपरदन तथा वहन की प्रक्रिया से अलग हो जाते हैं।

5. रंग -खनिजों के अपने रंग होते हैं जिनके आधार पर इनकी पहचान बनती है

शैल चक्र क्या है?

शैल चक्र एक सतत प्रक्रिया है जिसमें पुरानी चट्टानें परिवर्तित होकर नवीन रूप लेती हैं। आग्नेय चट्टानों से अन्य चट्टानें निर्मित होती है ।
दूसरे शब्दों में कहे चट्टानों का अपने अपने एक रूप से किसी और रूप में चले जाना ही शैल चक्र कहते हैं।

शैल और खनिज
शैल चक्र


शैल चक्र के मुताबिक प्रमुख प्रकार की शैलों के बीच में क्या संबंध है?


शैल चक्र के अनुसार प्रमुख प्रकार की चट्टानें एक दूसरे से संबंधित हैं। शैल चक्र में पुरानी चट्टानें परिवर्तित होकर नवीन रूप लेती हैं। आग्नेय चट्टानों जिन्हें प्राथमिक चट्टानें कहते हैं से अन्य चट्टानों का निर्माण हुआ है।तीनों वर्ग की चट्टानों में किस प्रकार के पारस्परिक संबंध की व्याख्या शैल चक्र की सहायता से की जा सकती है। 

भूपृष्ठ के नीचे सभी चट्टानें तरल अवस्था में हैं, जिसे मैग्मा कहते हैं। जब मैग्मा ठंडा और ठोस हो जाता है तब इसे आग्नेय चट्टान कहते हैं। बाहरी आग्नेय चट्टानों पर अपक्षय तथा अपरदन दोनों ही कारकों का प्रभाव पड़ता है। इनके प्रभाव से आग्नेय चट्टान अनेक सूक्ष्म कणों में विखंडित होती रहती हैं।

 पवन तथा नदी आदि कारकों द्वारा जब ये पदार्थ किसी मैदान, झील या समुद्र में एकत्र हो जाते हैं तो अवसादी चट्टान बन जाती हैं तथा ये ही अवसादी चट्टानें जब गहराई में दब जाती हैं तो अधिक ताप, दाब तथा पृथ्वी की आंतरिक रासायनिक क्रियाओं द्वारा इनका रूप परिवर्तन हो जाता है और रूपांतरित चट्टान बन जाती हैं। ये रूपांतरित चट्टानें जब मौसम, अपक्षय या अपरदन के कारकों से प्रभावित होती हैं तो पुनः अवसादी चट्टान में बदल जाती हैं।

रूपान्तरित तथा अवसादी चट्टानें अधिक ताप और दाव से मैग्मा जैसी तरल अवस्था में पहुँच जाती हैं। बदलती हुई दशाओं के कारण एक चट्टान दूसरे प्रकार की चट्टान में बदल
जाती है।  

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चट्टानों की बनावट से क्या तात्पर्य है?

चट्टान की बनावट का संबंध चट्टानों में पाये जाने वाले कण तथा आकार से होता है। आकार तथा कणों की बनावट किसी आग्नेय चट्टान के मैग्मा के ठंडा तथा ठोस होने की प्रक्रिया पर निर्भर करता है।

शैल और खनिज


चट्टान किसी कहते हैं ? चट्टान के प्रकार बताइए?

चट्टान एक या एक से अधिक खनिजों का मिश्रण है जो स्थल मंडल का निर्माण करता है। एक ठोस पदार्थ जिससे भूपृष्ठ की रचना हुई है, चट्टान कहते हैं। चट्टान कठोर, मुलायम, बड़े आकार अथवा छोटे आकार की भी हो सकती है जैसे ग्रेनाइट कठोर चट्टान तथा ग्रेफाइट मुलायम चट्टान है।

चट्टान के प्रकार हैं

1.आग्नेय चट्टान
2.अवसादी या परतदार चट्टान 
3.रूपान्तरित चट्टान 

आग्नेय चट्टाने किसे कहते हैं?


आग्नेय चट्टानें — इनका निर्माण पृथ्वी के आन्तरिक भाग में मैग्मा और लावा से होता है अत: इनको प्राथमिक चट्टानें भी कहते हैं। ग्रेनाइट, गैव्रौ, बसाल्ट, ब्रेशिया आदि आग्नेय चट्टान के उदाहरण है। इससें सम्बंधित दो  खनिज हैं निकिल तथा ताँबा।

आग्नेय चट्टान के दो प्रकार है । 
आन्तरिक चट्टान तथा बाह्य चट्टान

शैल और खनिज


अवसादी चट्टानें किसे कहते हैं?

अवसादी चट्टानें– पृथ्वी की सतह की चट्टानें आच्छादनकारी कारकों के प्रति अनावृत्त होती हैं जो विभिन्न प्रकार के विखंडों में विभाजित होती हैं। ऐसे उपखंडों को विभिन्न बाह्य कारकों द्वारा संवहन एवं संचय होता है। सघनता के द्वारा ये सचित पदार्थ चट्टानों में परिवर्तित हो जाते हैं।

यह प्रक्रिया प्रस्तरीकरण कहलाती है। अवसादी चट्टानों का वर्गीकरण तीन प्रमुख समूहों में किया गया है।

1. यांत्रिकी रूप से निर्मित-जैसे बालू, चूना पत्थर, शैल आदि।
2. कार्बनिक रूप से निधि-जैसे खड़िया, चूना पत्थर, कोयला आदि।
3. रासायनिक रूप से निर्मित-जैसे भृंग, चूना पत्थर, पोटाश आदि।

कायान्तरित चट्टान (रूपान्तरित चट्टान) किसे कहते हैं?

कायान्तरित चट्टानें — कायान्तरित शैल का अर्थ है स्वरूप में परिवर्तन दाब, आयतन एवं तापमान में परिवर्तन की प्रक्रिया के कारण इन चट्टानों का निर्माण होता है जब विवर्तनिक प्रक्रिया के कारण चट्टाने निचले स्तर को ओर बलपूर्वक खिसक जाती है या जब भूपृष्ठ से उठता पिघला हुआ मैग्मा भूपृष्ठीय चट्टानों के सम्पर्क में आता है अथवा जब ऊपरी चट्टान के कारण निचली चट्टानों पर अत्यधिक दाब पड़ता है तब कायांतरण होता है। कायांतरण वह प्रक्रिया है जिसमें समेकित चट्टानों में पुन: फ्रस्टलीकरण होता है तथा वास्तविक चट्टानों में पदार्थ पुनः संगठित हो जाते हैं। संगमरमर, स्लेट, क्वार्टज आदि रूपान्तरित चट्टानों के उदाहरण है।

शैल की परिभाषा करते हुए उसके प्रकारों पर प्रकाश डालें।

चट्टान एक या एक से अधिक खनिजों का मिश्रण है जो स्थल मंडल का निर्माण करता है,एक ठोस पदार्थ । जिससे पृथ्वी की रचना हुई है।

1. आग्नेय चट्टान-जैसा कि हम जानते हैं कि पृथ्वी का निर्माण तीन परतों से हुआ है-भू-पृष्ठ, मैंटल और अभ्यान्तर । भू-पृष्ठ की उठी हुई आकृति, जो स्थल प्रदर्शित होने से ठोस अवस्था में बदल गई है आग्नेय चट्टान कहलाती है। कई बार हम आग्नेय शब्द से आग का अर्थ समझ लेते परन्तु भूगोल में इसका अर्थ है ऊँचा तापमान धरती के भीतर का लावा, जिसे मैग्मा कहते हैं, बाहर आकर ठंडा हो जाता है और ठोस बन जाता है। ग्रेनाइट और बेसाल्ट आग्नेय चट्टानों के ही रूप हैं।

2. परतदार या अवसादी या तलछटी शैल — पृथ्वी का अधिकांश भाग तलहटी शैलों से बना है। तलछट  वे पदार्थ हैं जो वायु और जल द्वारा प्रवाहित होते हैं तथा बाद में नीचे धरातल या तल पर बैठ जाते हैं। झीलों, नदियों या महासागरों के तल या मरुस्थल के धरातल पर जमी हुई इन्हीं तलछटों में तलछटी शैलों का निर्माण होता है। ये तलछट अपक्षय और अपरदन क्रियाओं का परिणाम हैं।

कभी ये छोटे होते हैं तो कभी बड़े। इनमें कभी जीवों की प्रमुखता होती है और कभी वनस्पति की। तलछट को एक स्थान से उठाने ले जाने तथा अन्य स्थान पर जमा करने का कार्य वायु, जल तथा हिमानी द्वारा होता है। इन चट्टानों की रचना परतों से होती है। इसलिए इन्हें परतदार तलछट कहते हैं।

तलछट नदियों तथा हवा द्वारा लाये गये पदार्थों को कहते हैं। रेत, चीका मिट्टी, कंकड़, पत्थर तलछटों के मुख्य उदाहरण हैं। इन शैलों में जीव अवशेष भी पाये जाते हैं अतः इनको जीव-अवशेष शैल भी कहते हैं

भूतल के 75% भाग को ये चट्टानें घेरे हुए हैं। इनमें विभिन्न रंगों एवं आकारों का परतें पाई जाती हैं। इनका जन्म प्रमुख रूप से जल के आन्तरिक भागों में तल के जमा होने से होता है। इसलिए इन्हें अवसादी चट्टानें भी कहते हैं। नदियाँ तलछट पदार्थों को अपनी घुलन शक्ति और प्रवाह शक्ति के द्वारा समुद्रों तक पहुँचाती हैं। तलछट के कण अपने आकार और बोझ के अनुसार परतों का निर्माण करते हैं। ग्रेनाइट इसका सबसे अच्छा उदाहरण है।

3. कायान्तरित शैल– भू-पृष्ठ पर कुछ ऐसी शैल या चट्टानें पाई जाती हैं जो न तो आग्नेय होती हैं और न तलछट। आग्नेय और तलछटी शैलों का ऊष्मा, संपीडन और विलयन द्वारा रूप परिवर्तन होता है। इस रूप परिवर्तन में बहुत समय लगता है। संगमरमर, स्लेटों का पत्थर और ग्रेफाइट इसके प्रमुख उदाहरण हैं। यह रूप परिवर्तन दाब और ताप के कारण होता है।

इनके रंग, रूप व आकार में इतना परिवर्तन हो जाता है कि उनके मौलिक रूप की कल्पना भी नहीं की जा सकती। चूने का पत्थर संगमरमर में, ग्रेनाइट नीस में पीट कोयले में, चीका स्लेट में और ग्रेफाइट हीरे में बदल जाता है और परिवर्तित चट्टान का रूप धारण कर लेते हैं।

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खनिज तथा चट्टान में क्या अंतर है?

खनिज

1. खखनिज प्राकृतिक संघटक हैं जैसे सिलीकेट आक्साइड और कार्बोनेट आक्साइड।
2. खनिजों में निश्चित रासायनिक तथा भौतिक तत्त्व होते हैं।
3. चाँदी, कोयला, तेल आदि खनिज हैं।

चट्टान

1. यह एक अथवा अधिक खनिजों का समूह होता है।
2. भौतिक तथा रासायनिक गुणों में भिन्नता होती है।
3. ग्रेनाइट, बेसाल्ट, संगमरमर आदि चट्टानों के रूप
हैं।

फोलिएशन तथा लिनिएशन में अंतर। 

 फोलिएशन — जब रूपान्तरित शैल के कण कुछ-कुछ परत के रूप में समान्तर अवस्था में पाये जाते हैं तो इस प्रकार की बनावट को फोलिएशन कहते हैं।

लिनिएशन—ये रूपान्तरित चट्टानों में एक बनावट होती है जिसके अन्तर्गत खजिन कण लंबे, पतले तथा पैन्सिल के रूप में बाहर निकलते हैं।

अवसादी शैल तथा रूपांतरित शैल में अंतर। 

अवसादी शैल

1. अवसादी शैल हवा, पानी एवं हिम द्वारा लाये हुए अवसादों से बनती है।
2. अवसादी शैल का  निर्माण संघनन प्रक्रिया एवं संयोजन प्रक्रियाओं द्वारा भी
होता है।
3. इनका निर्माण भूमि के परतों में  होता है जो एक दूसरे परत पर स्थिर होती हैं।
4. अवसादी शैलों का निर्माण जल में होता है।
5. इन शैलों में जीव के अवशेष पाये जाते हैं।

रूपांतरित शैल

1. रूपांतरित शैल का निर्माण गर्मी, अधिक दाब तथा रासायनिक क्रियाओं द्वारा होता है।
2. इन शैलों का निर्माण आग्नेय एवं अवसादी शैलों के रूप बदलने से होता है।
3. रूपांतरित शैल का निर्माण ठोस अवस्था में होता है।
4. रूपांतरित शैल धरातल से हजारों मीटर की गहराई पर बनती हैं।
5. इनमें जीव अवशेषों का अभाव होता है।

खनिजों का आर्थिक महत्त्व।

खनिजों का आज के युग में बहुत महत्त्व है। ये आवश्यक संसाधनों में गिने जाते हैं। इनसे उद्योगों के लिये कच्चा माल प्राप्त होता है जैसे लोहा, तांबा आदि। ऊर्जा के साधन भी खनिज संसाधन हैं। जैसे कोयला तथा तेल हमें ऊर्जा के लिये ही निकालने होते हैं। इनको जैविक खनिज भी कहते हैं। इसके अतिरिक्त ऊर्जा के लिये यूरेनियम तथा थोरियम भी प्राप्त किया जाता है।

रूपान्तरित चट्टानों का आर्थिक महत्त्व बताइए।

 

 रूपान्तरित चट्टानों का आर्थिक महत्त्व-रूपांतरित चट्टानों में नाइस, क्वार्टजाइट, एंथ्रासाइट, ग्रेफाइट, संगमरमर, स्लेट आदि महत्त्वपूर्ण पदार्थ मिलते हैं। नाइस अधिकतर इमारती पत्थर के रूप में प्रयोग किया जाता है। क्वार्टजाइट कठोरतम चट्टानों में से एक है जिसका प्रयोग काँच बनाने के लिए किया जाता है। क्वार्टजाइट राजस्थान, बिहार, मध्य प्रदेश तथा तमिलनाडु में पाया जाता है। आगरा का ताजमहल संगमरमर से बना हुआ है। 

यह अलवर, अजमेर, जयपुर और जोधपुर के समीप पाया जाता है। मध्य प्रदेश में जबलपुर के निकट नर्मदा नदी की घाटी में भी संगमरमर पाया जाता है। स्लेट घरों की छत तथा फर्श बनाने के लिए प्रयोग की जाती है। स्कूली बच्चे भी लिखने के लिए स्लेट का प्रयोग करते हैं। बिलियर्ड्स की मेज बनाने के लिए मोटी स्लेट का प्रयोग किया जाता है।

 स्लेट हरियाणा (रेवाड़ी), हिमाचल प्रदेश (काँगड़ा) तथा बिहार के कुछ भागों में पाई जाती है। ग्रेफाइट पेंसिल और धातु गलाने की घड़ियाँ  बनाने के काम आता है। यह उड़ीसा और आन्ध्र प्रदेश में पाया जाता है। रूपांतरण में रत्न, माणिक तथा नीलम जैसे कई प्रकार के बहुमूल्य जवाहरात उत्पन्न होते हैं।

आर्थिक महत्त्व  की दृष्टि सें अवसादी तथा आग्नेय चट्टानों के महत्त्व। 

भूगर्भवेत्ता चट्टानों के अध्ययन में विशेष रुचि लेते हैं क्योंकि चट्टानों में ही पृथ्वी का इतिहास छिपा है। वे चट्टानों का अध्ययन इनमें छिपे आर्थिक महत्त्व के खनिजों तथा उपजाऊ मिट्टी के लिए भी करते हैं।

अवसादी चट्टानों का आर्थिक महत्व। 

अवसादी चट्टानें  – ये चट्टानें आर्थिक महत्त्व के खनिजों के लिए विशेष महत्त्वपूर्ण नहीं हैं। फिर भी इनमें लौह अयस्क, फास्फेट, इमारती पत्थर, कोयला तथा सीमेन्ट बनाने वाले पदार्थ पाए जाते हैं।

लवण शैल, नीट्रे पाइराइट तथा हेमेटाइट भी मिलता है। इन्हीं चट्टानों में कुछ बाक्साइट, मैंगनीज तथा टिन भी मिलता है। इन क्षेत्रों में पेट्रोलियम भी पाया जाता है।

आग्नेय चट्टानों का आर्थिक महत्व। 

आग्नेय चट्टानें—ये रवेदार चट्टानें होती हैं। अतः आर्थिक महत्त्व के खनिजों के लिए महत्त्वपूर्ण हैं। ये खनिज हैं- चुम्बकीय लोहा, निकिल, चाँदी, ताँबा, सीसा, जस्ता क्रोमाइट, मैंगनीज तथा कुछ मूल्यवान खनिज जैसे- सोना, हीरा तथा प्लैटिनम आदि ।

धातु उद्योग में इन खनिजों का बड़ा महत्त्व है। सीसा, जस्ता, टिन तथा तांबा-क्वार्टज् तथा केल्साइट के साथ मिले-जुले मिलते हैं।

आग्नेय चट्टानों में लोहा तथा मैग्नेशियम युक्त सिलिकेट खनिज अधिक होते हैं। इन चट्टानों में कुछ मात्रा में अभ्रक भी मिलता है।

छत्रक शैल किसे कहते हैं?

छत्रक शैल सबसे अधिक मरुस्थलीय (रेगिस्तान) वाले इलाके में सबसे अधिक दिखाई देते है। इसका कारण है मरुस्थल के भाग में कठोर चट्टानों के रूप में ऊपरी आवरण के नीचे कोमल चट्टाने लम्बवत तरीके से मिलती हैं तो उस पर पवन के अपघर्षण के प्रभाव से मरूस्थल रूपों का निर्माण होता है पवन द्वारा चट्टानों के निचले हिस्से में सबसे अधिक अपघर्षण द्वारा उसका आधार कटने  लगता है।

जिसके कारण चट्टान का निचला भाग चारों तरफ से अत्यधिक कट जाता है जिसकी वजह से वह नीचे से पतला हो जाता है और ऊपरी भाग वैसा ही रहता जिसके कारण यह हमे छते के आकार में दिखाई पड़ता,जिसके कारण से इसे छत्रक शैल कहते हैं। छत्रक शैल को सहारा मरूस्थल में गारा कहा जाता है।

शैल और खनिज


बैंडेड शैलें किसे कहते है ?

कभी-कभी खनिज या विभिन्न समूहों के कण पतली से मोटी सतह में इस प्रकार व्यवस्थित होते हैं कि वे हल्के एंव गहरे रंगों में दिखाई देते हैं। कायान्तरित शैलों में ऐसी संरचनाओं को बैंडिंग कहते हैं तथा बैंडिंग प्रदर्शिता करने वाली शैलों को बैंडेड शैलें कहते है।

निष्कर्ष:- उपरोक्त बातो से हमें ये पता चलता है कि खनिज एवं शैल किसी देश के विकास का एक  महत्त्वपूर्ण हिस्सा है। परन्तु पृथ्वी पर ये खनिजे धीरे धीरे समाप्त होते जा रहे हैं क्योंकि खनिजों को भूमि से अधिक मात्रा में निकाला जा रहा है। 

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