मृदा के प्रकार और उनका वितरण @2021

दोस्तों आप का स्वागत है हमारे Achiverce Information में  तो आज का हम आपको बताने जा रहे  मिट्टी(mitti) के प्रकार और उनकी विशेषताएँ से जुड़े जानकारी के बारे में है। 

मिट्टी(mitti) ईश्वर के द्वारा इंसानों को दिये गए तोहफों में सबसे खास तोहफा माना गया है क्योंकि इंसान इसके द्वारा ही अपने पेट को भरने के लिए अनाज को मिट्टी के द्वारा ही पैदा करता है। आइये फिर जानते हैं मिट्टी(mitti) से जुड़े कुुछ बातों को 

भारत की मिट्टी

मिट्टी(mitti) के अध्ययन के विज्ञान को मृदा विज्ञान कहा जाता है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ने भारत की मिट्टीयों को कई वर्गों में विभाजित किया है। 

नोट:- देश में मृदा अपरदन व उसके दुष्परिणामों पर नियंत्रण हेतु 1953 में केन्द्रीय मृदा संरक्षण बोर्ड का गठन किया गया। मरूस्थल की समस्या के अध्ययन के लिए जोधपुर में Central Arid Zone Research Institute (CAZRI) की स्थापना की गई है।

भारत की मिट्टियों के प्रकार और उनका वितरण


 

मृदा क्या है?

 ह्यूमस के साथ मिले हुए असंगठित शैल जो स्थल के ऊपरी भाग का निर्माण करते हैं तथा पेड़-पौधों के लिए भोजन और नमी प्रदान करता हैं मृदा कहलाती है। 

यह भी पढ़े:-विश्व के प्रमुख भौगोलिक उपनाम से सम्बंधित महत्वपूर्ण प्रश्न। 

मृदा का निर्माण कैसे होता है?

 मृदा का निर्माण:- मृदा का निर्माण करने की संज्ञा दी जाती है। इस पर सबसे अधिक प्रभाव जनक शैलों अर्थात मूल पदार्थ, उच्चावच, जलवायु तथा प्राकृतिक वनस्पतियों का पड़ता है। 

(1) मूल पदार्थ:- मृदा का निर्माण करने वाला मूल पदार्थ शैलों से प्राप्त होता है। यदि मृदा सीधा शैलों से बनी है तो इसका रंग काला होगा और यदि इसका निर्माण नदियों के निक्षेपण से हुआ है तब इस मृदा में मूल पदार्थ का अंश कम रह जाता है, क्योंकि नदियों द्वारा निक्षेपण से मूल पदार्थ अपनी वास्तविकता खो देता है। 

(2) उच्चावच:- मृदा निर्माण की प्रक्रिया को उच्चावच कई प्रकार से प्रभावित करता है, जैसे- सम उच्चावच वाले क्षेत्रों में मृदा की परत गहरी होती है। इसके विपरीत, तेज़ ढाल वाले क्षेत्रों में मृदा की परत कम गहरी होती है। 

(3) जलवायु:- मृदा निर्माण में जलवायु भी एक महत्वपूर्ण घटक है वर्षा की मात्रा एवं इसके ऋतुवत विवरण के द्वारा जलवायु मृदा निर्माण की स्थितियों को प्रभावित करती है। 

(4) प्राकृतिक वनस्पति:-मृदा निर्माण में प्राकृतिक वनस्पति का बड़ा योगदान होता है। पेड़ों से गिरे पत्ते, फल-फूल गलने सड़ने के बाद मृदा की उर्वरता बढते  तथा ह्यूमस प्रदान करते है। 

मिट्टी के प्रकार और उनकी विशेषताएँ(mitti ki prakaar) 

(1) जलोढ़ मृदा

(2) काली मृदा

(3) लाल और पीली मृदा

(4) लैटराइट मृदा

(5) पर्वतीय व वनीय मृदा

(6) मरूस्थलीय मृदा

(7) क्षारीय मृदा

(1) जलोढ़ मृदा

जलोढ़ मृदा उपजाऊपन की दृष्टि से सबसे महत्वपूर्ण मृदा है। इस मृदा का निर्माण नदियों के निक्षेपण से हुआ है। यह मृदा भारत के कुल क्षेत्रफल के 43.3% भाग पर फैली हुई है। यह मृदा उत्तरी भारत के मैदानों में पंजाब से लेकर असम तक महानदी, गोदावरी, कृष्णा, एवं कावेरी नदियों के डेल्टाई भागे में पाई जाती है। 

इसमें प्रमुख फसले गन्ना, चावल, गेहूँ, दलहन आदि 

अत्यंत उपजाऊ जलोढ़ मृदा के दो प्रकार है बांगर (पुराना जलोढ़) और खादर (नया जलोढ़) 

(2) काली मृदा

इस मृदा का रंग काला होता है तथा यह कपास की कृषि के लिए अधिक उपयुक्त है। इस मृदा का निर्माण हज़ारों साल पहले दक्कन के पठारी भाग में लावा चट्टानों के विखंडन से हुआ है। 

इस मृदा में अपने अंदर अधिक समय तक आर्द्रता को बनाए रखने की क्षमता होती है जिसके कारण यह मृदा सूखा सहन करने वाली फसलों के लिए उत्तम होती है।

 यह मृदा मुख्य रूप से महाराष्ट्र, गुजरात, आंध्र प्रदेश, मध्यप्रदेश तथा तमिलनाडु के कुछ भागों में पाई जाती है। 

इस मृदा में पोषक तत्व कैल्शियम कार्बोनेट, मैग्नीशियम, पोटाश और चूना परन्तु फाॅस्फोरस की मात्रा कम होती है। 

भारत की मिट्टियों के प्रकार और उनका वितरण


(3) लाल और पीली मृदा

इन मृदाओं का रंग लाल रवेदार, आग्नेय और रूपांतरित चट्टानों में लौह के प्रसार के कारण होता है। इनका पीला रंग इनमें जलयोजन के कारण होता है। इस मृदा में लोहा, एल्यूमिनियम एवं चूना अधिक मात्रा में पाया जाता है किंतु नाइट्रोजन, फाॅस्फोरस और ह्यूमस की मात्रा कम पाई जाती है। यह मृदा चावल, गेहूँ, आलू, ज्वार, बाजरा आदि फसलों की कृषि के लिए अधिक उत्तम है। ये मृदाएं उड़ीसा, छत्तीसगढ़, मध्य गंगा मैदान के दक्षिणी छोर पर पश्चिमी घाट में पहाड़ी पाद पर पाई जाती है। 

भारत की मिट्टियों के प्रकार और उनका वितरण


(4) लैटराइट मृदा

लैटराइट शब्द ग्रीक भाषा के शब्द ‘लेटर’ से लिया गया है जिसका अर्थ है ईट। लैटराइट मृदा उच्च तापमान और अत्यधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में विकसित होती है। इन मृदा का निर्माण भारी वर्षा से अत्यधिक निक्षालन के कारण होता है। इस मृदा में ह्यूमस की मात्रा कम पाई जाती है, क्योंकि अत्यधिक तापमान के कारण जैविक पदार्थों को अपघटित करने वाले बैक्टीरिया नष्ट हो जाते हैं। ये मृदा मुख्य रूप से कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु, मध्यप्रदेश,, उड़ीसा तथा असम के पहाड़ी क्षेत्र में पाई जाती है। 

(5) पर्वतीय व वनीय मृदा

इस प्रकार की मृदाएं प्रायः पर्वतीय क्षेत्रों में पाई जाती हैं। इन मृदाओं के गठन में पर्वतीय पर्यावरण के अनुसार बदलाव आता है। नदी घाटियों में ये मृदाएं दोमट और सिल्टदार होती हैं, परन्तु ऊपरी ढालों पर इनका गठन मोटे कणों का होता है। इस प्रकार की मृदा का विस्तार पहाड़ी राज्यों विशेषकर जम्मू- कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, अरूणाचल प्रदेश एवं मेघालय में पाया जाता है। 

(6) मरूस्थलीय मृदा

इस प्रकार की मृदा का निर्माण शुष्क एवं अदर्ध-शुष्क दशाओं में देश के उत्तरी पश्चिमी भागों में हुआ है। सिंचाई की सुविधा उपलब्ध हो जाने पर यह मृदा उपजाऊ हो जाती है। सिंचाई की सहायता से गेहूँ, गन्ना, कपास, ज्वार, बाजरा आदि फसलें पैदा की जाती है, परन्तु जहाँ सिंचाई की सुविधा उपलब्ध नहीं है, वहाँ भूमि बंजर पड़ी रहती है। इस मृदा का विस्तार राजस्थान के पश्चिमी भाग, पंजाब एवं हरियाणा के दक्षिणी जिले तथा गुजरात में कच्छ के रन में पाया जाता है। 

भारत की मिट्टियों के प्रकार और उनका वितरण


(7) क्षारीय मृदा

क्षारीय मृदा में सोडियम, पोटैशियम और मैग्नेशियम का अनुपात अधिक होता है। अत: ये अनुपजाऊ होती है। यहाँ तक कि इसमें किसी भी प्रकार की वनस्पति नहीं उगती। मुख्य रूप से शुष्क जलवायु और खराब अपवाह के कारण इसमें लवणों की मात्रा बढ़ती जाती है। ये शुष्क और अर्ध-शुष्क तथा भराव वाले क्षेत्रों में पाई जाती है। यह मृदा पश्चिमी गुजरात, पूर्वी तट के डेल्टाओं और पश्चिमी बंगाल के सुंदरवन के क्षेत्रों में पाई जाती है। 

यह भी पढ़े:-

  1. भारतीय संविधान के महत्वपूर्ण अनुच्छेद।
  2. भारतीय सविधान की मुख्य विशेषता। 
  3. भारतीय सविधान में मौलिक अधिकारों के बारे में सात अविश्वसनीय तथ्य 2021। 
  4. सम्प्रेषण का महत्व और उसके विभिन्न माॅडल, संप्रेषण प्रकिया के मूल तत्व 2021
  5. पृथ्वी की उत्पत्ति एवं विकास
  6. पांच भयानक चीजें जो आप वायु प्रदूषण का अध्ययन करने से सीख सकते हैं 2021

Join telegram channel click here 👇




Join what’s aap group





Sharing The Post:

नमस्कार दोस्तों, मैं अमजद अली, Achiverce Information का Author हूँ. Education की बात करूँ तो मैंने Graduate B.A Program Delhi University से किया हूँ और तकनीकी शिक्षा की बात करे तो मैने Information Technology (I.T) Web development का भी ज्ञान लिया है मुझे नयी नयी Technology से सम्बंधित चीज़ों को सीखना और दूसरों को सिखाने में बड़ा मज़ा आता है. इसलिए मैने इस Blog को दुसरो को तकनीक और शिक्षा से जुड़े जानकारी देने के लिए बनाया है मेरी आपसे विनती है की आप लोग इसी तरह हमारा सहयोग देते रहिये और हम आपके लिए नईं-नईं जानकारी उपलब्ध करवाते रहेंगे

Leave a Comment