आप का स्वागत है मित्रों हमारे Achiverce Information में तो आज हम आपको मेडिकल ऑक्सीजन कैसे बनती है?(medical oxygen kaise banatee hai) जानकारी के बारें मे बताने जा रहे है।
ऑक्सीजन(oxygen) आज हमारे जीवन के लिए आवश्यक इसके बिना इंसान सांस भी नहीं ले सकते।आज देखा जाए तो कोविंड-19 संक्रमण के दुसरे लहर ने हर जगह भयानक रूप लेता जा रहा है और दुसरी तरफ सरकार की तैयारीयो की पोल खोल दी है।
नोट:-हाल ही में 22 अप्रैल 2021 को दोपहर 12 बजे नाशिक में ऑक्सीजन (oxygen) लीक से 22+ लोगों की जान गयी।
भारत के ज्यादातर अस्पतालों में बैड, दवाईयां,इंजेक्शन आदि तो दूर ऑक्सीजन (oxygen) सिलेंडरो तक की कमी अधिक हो रही है जिससे मरीजों की मृत्यु अधिक हो रही है और लोगों को ऑक्सीजन सिलेंडर के लिए दर दर की ठोकरें खानी पर रही है। जिसके कारण दवाईयाँ, इंजेक्शन, ऑक्सीजन सिलेंडर की काला बाजारी बढ़ रही है।
इस तरह लोगों के मन में ये सवाल भी उठ रहा है कि अगर हम हवा में सांस ले सकते हैं और ऑक्सीजन भी हमारे चारों ओर है तो इसी ऑक्सीजन को सिलेंडरो में भर कर मरीजों को क्यो नही दे दिया जाता।
आइए फिर जानते हैं हमारे चारों ओर फैले ऑक्सीजन और मेडिकल ऑक्सीजन के बीच क्या अंतर है। मेडिकल ऑक्सीजन कैसे बनाया जाता है और इसकी इतनी किलत क्यों हो रही है।
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प्राकृतिक ऑक्सीजन क्या होता है?( praakrtic oxygen kya hota hai?)
दोस्तों आपके जानकारी के लिए बता दे कि ऑक्सीजन(oxygen) हवा और पानी दोनों में ही मौजूद है। हमारे वायुमंडल सिर्फ 21% ऑक्सीजन मौजूद है और 78% नाइट्रोजन गैस होती है। इसके अलावा 1% अन्य गैसें होती है जिसमें कुछ मात्रा में कार्बन डाइऑक्साइड और कुछ मात्रा में अन्य गैसें भी हमारे हवा में मौजूद होते हैं।
ऑक्सीजन(oxygen) पानी में घोली हुई होती है पानी में घोली ऑक्सीजन की मात्रा अलग अलग जगहों पर अलग अलग होती है। पानी में 10 लाख माॅलिक्युल में से सिर्फ ऑक्सीजन के 10 माॅलिक्युल होते जिसके कारण इंसान पानी में सांस नहीं ले पाता ।
मेडिकल ऑक्सीजन क्या होता है?(medical oxygen kya hota hai)
मेडिकल ऑक्सीजन का मतलब होता है है 98% तक शुद्ध ऑक्सीजन यनि की जिसमें किसी भी प्रकार की अशुद्धि का न होना देखा जाए तो यह कानूनी रूप से यह जरूरी दवा है। जिसे 2015 में जारी देश की दवाओं की लिस्ट में शामिल किया गया है। साथ ही W.H.O( विश्व स्वास्थ्य संगठन) ने इसे आवश्यक दवाओं की लिस्ट में शामिल किया है।
जैसा कि हमने आपको पहले भी बताया है कि हमारे चारों ओर 21% ऑक्सीजन मौजूद है तो इस लिए इसका मेडिकल इमर्जेंसी में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता और इस मेडिकल ऑक्सीजन को लिक्विड फार्म में खास वैज्ञानिक तरीके से बहुत बड़े बड़े प्लांट में तैयार किया जाता है।
मेडिकल ऑक्सीजन कैसे बनती है?(medical oxygen kaise banatee hai)
दोस्तों मेडिकल ऑक्सीजन को बड़े ही खास तरीके से प्लांटों में बनाया जाता है। हमारे चारों मौजूद शुद्ध हवा को अलग करके बनाया जाता है। हमारे आसपास मौजूद हवा 78% नाइट्रोजन होता है और 21% ऑक्सीजन , 1% अन्य गैसें होती है।
इन सभी गैसों का बोइंग पोइंट बेहद कम और अलग अलग होता है।अगर इसमें हम हवा को जमा करके उसे ठंडा करते जाए तो ये सभी गैसें बारी बारी से लिक्विड बनती जायगी। जिन्हें हम अलग अलग करके लिक्विड फर्म में जमा कर लेते हैं और इस तरह लिक्विड ऑक्सीजन 99.5% तक शुद्ध होती है।
मेडिकल ऑक्सीजन बनाने की प्रक्रिय।(medical oxygen banaane kee prakriya)
सबसे पहले प्रक्रिया में हवा को ठंडा करके उसमें से फिल्टर के जरिये धूल, तेल, नमी, अन्य अशुद्धि को निकाला जाता है। ऑक्सीजन प्लांट में हवा में से ऑक्सीजन को अलग कर लिया जाता है और एयर सेपरेशन तकनीक का प्रयोग किया जाता है। यनि पहले हवा को कम्प्रेस किया जाता है जिससे अशुद्धिया इसमे से निकल जाए।
दुसरी प्रक्रिया में फिल्टर की गई हवा को ठंडा किया जाता है और फिर इस हवा को डिस्टल किया जाता है जिससे कि ऑक्सीजन को बाकी गैसों से अलग किया जा सके और इस प्रक्रिया में ऑक्सीजन लिक्विड बन जाती है। इसी स्थिति में इसे जमा किया जाता है।
अस्पताल तक कैसे पहुँचता है मेडिकल ऑक्सीजन?
लिक्विड ऑक्सीजन (oxigen) को मैनुफैक्चर बड़े बड़े टेको में जमा करके रखते हैं और यहा से इस बेहद ठण्डे रहने वाले क्रायोजेनिक टेकरो से डिस्ट्रीब्योटर तक पहुँचाया जाता है।डिस्ट्रीब्योटर इसके प्रेशर को कम करके गैस के रूप में अलग अलग तरह के केप्सूल के आकार के सिलेंडरों में भरा जाता है।
यही सिलेंडर सीधे अस्पताल में या छोटे छोटे सप्लायर तक भेजा जाता है। इसके अलावा कुछ बडे़ अस्पतालों में अपने छोटे छोटे ऑक्सीजन प्लांट होते है।
एक इंसान को कितनी ऑक्सीजन (Oxygen) की आवश्यकता होती है।
एक व्यस्क व्यक्ति जब भी काम कर रहा होता है तो उसे सांस लेने के लिए प्रत्येक मिनट में 6 से 7 लीटर हवा की जरूरत होती है। दिन में 11 हजार लीटर हवा की जरूरी होती है, सांस के जरिये फैफडो़ में जाने वाली हवा में 21% ऑक्सीजन होती है जबकि छोड़ी जानी वाली सांस में 15% होती है।
यानि की सांस के जरिये अंदर जाने वाली हवा मात्र 5% का इस्तेमाल होता है और यही 5% वो ऑक्सीजन है जो कार्बन डाइऑक्साइड में बदलता है इसका मतलब यह हुआ कि 24 घण्टे में 550 लीटर शुद्ध ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है। मेहनत के काम करने याा फिर व्यायाम करने में ओर ज्यादा ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है।
स्वास्थ्य व्यस्क व्यक्ति एक मिनट में मात्र 12 से 20 बार सांस लेता है। यदि हर मिनट में 12 से कम या 20 से ज्यादा बार सांस लेना किसी परेशानी की निशानी है।
मेडिकल ऑक्सीजन की कमी क्यों हो रही है?
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करोना महामारी के चलते भारत में हर दिन ऑक्सीजन (oxygen) की खपत एक हजार से 12 सौं मैट्रिक टन थी और ये 15 अप्रैल को बढ़कर 4795 मैट्रिक टन हो गयी और इस तेजी से बढ़ते ऑक्सीजन के मांग के कारण ऑक्सीजन सप्लाई में दिक्कतें आ रही है।
पुरे भारत में प्लांट से लिक्विड ऑक्सीजन(oxygen)को डिस्ट्रीब्योटर तक पहुँचाने के लिए सिर्फ 12 सौं से 15 सौं क्रायोजेनिक टेंक ही उपलब्ध है जो इस करोना महामारी के दुसरे लहर से पहले के लिए प्रर्याप्त थे।
लेकिन हर दिन 2 लाख से ज्यादा मरीज के सामने आने से टेंकर कम पड़ रहे और डिस्ट्रीब्योटर लेवल पर भी लिक्विड ऑक्सीजन को गैस में बदल कर सिलेंडर में भरने के लिए खाली सिलेंडर की कमी आ रही है।इसलिए भारत में मेडिकल ऑक्सीजन की कमी हो रही है।
भारत में एक नहीं बहुत सी कम्पनियां है जो मेडिकल ऑक्सीजन का निर्माण करती है। ऑक्सीजन गैस का इस्तेमाल अस्पताल में ही नहीं बल्कि बड़े बड़े कैमिकल इंडस्ट्री और पेट्रोलियम कम्पनियों में भी होता है।
भारत में ऑक्सीजन(oxygen)निर्माण कम्पनियां
- Ellenbarrie Industrial Gases Ltd.
- Nastional Gases Oxygen Ltd.
- Bhagwati oxygen Ltd.
- Gagan Gases Ltd.
- Inox Air Products Ltd.
- Refex Industties Ltd.
ये कुछ बड़ी भारत की कम्पनियां है जो ऑक्सीजन(oxygen) गैस का निर्माण करती है।