जयशंकर प्रसाद का साहित्य जीवन परिचय @2021

जयशंकर प्रसाद  1889-1937

आप का स्वागत है मित्रों हमारे Achiverce Information में  तो आज हम आपको जयशंकर प्रसाद का साहित्य जीवन परिचय जानकारी के बारें मे बताने जा रहे है। 


जयशंकर प्रसाद जी हमारे हिन्दी गद्य के प्रिय कवियों में से एक है। आइये फिर जयशंकर प्रसाद जी के जीवन से जुड़े बातों को जानने प्रयास करे। 

जयशंकर प्रसाद जी से जुड़ी कुछ बातें

 जन्म सन्    :- 30 जनवरी 1889 मे 

जन्म स्थान   :- वाराणसी(उत्तर प्रदेश) 

शिक्षा           :-संस्कृत , फारसी तथा अंग्रेजी शिक्षा का घर पर ही ज्ञान प्राप्त किया । स्वाध्याय द्वारा विविध विषयों का अध्ययन किया। 

भाषा            :- संस्कृत प्रधान । 

शैली             :- अलंकृत एवं चित्रोपम ।

नाटक           :- चन्द्रगुप्त , स्कन्दगुप्त , अजातशत्रु ।

हानी संग्रह :- इन्द्रजाल , आँधी ।

मृत्यु             :-15 नवम्बर , सन् 1937 (आयु 47 वर्ष वाराणसी) 

जयशंकर प्रसाद जी की जीवन परिचय

 

जयशंकर प्रसाद का जन्म सन् 1889 ई.में वाराणसी के प्रसिद्ध ‘ सुँघनी साहू ‘ परिवार में हुआ था । आपके पूर्वज जौनपुर आकर बस गये थे । वहाँ पर उन्होंने तम्बाकू का व्यापार करना प्रारम्भ कर दिया । प्रसाद जी के पिता का नाम देवी प्रसाद था । इनके पिता के यहाँ बहुत से कवि और विद्वान् आते रहते थे । अत : साहित्यिक चर्चा का प्रभाव बालक प्रसाद पर पर्याप्त मात्रा में पड़ा । फलतः नौ वर्ष की आयु में कविता करना प्रारम्भ कर दिया । 

 

प्रसाद जी का पारिवारिक जीवन सुखी नहीं था । बचपन में ही इनके माता – पिता का देहान्त हो गया । दुर्भाग्य से सत्रह वर्ष की आयु में इनके बड़े भाई का देहान्त हो गया । इस कारण इनकी स्कूली शिक्षा अधिक न हो सकी । क्वीन्स कॉलेज से आठवीं कक्षा तक की शिक्षा प्राप्त की तत्पश्चात् घर पर ही इन्होंने हिन्दी , संस्कृत , फारसी और अंग्रेजी की शिक्षा प्राप्त की । इन्होंने वेद , पुराण , इतिहास , साहित्य और दर्शनशास्त्र , आदि का स्वाध्याय से ही सम्यक् ज्ञान प्राप्त किया।

असमय में माता – पिता , बड़े भाई की मृत्यु के कारण परिवार का सारा बोझ इनके कन्धों पर आ गया । इनका परिवार जो पहले वैभव के पालने में झूलता था , वह ऋण के बोझ से दब गया । इसी बीच इनकी पत्नी का देहावसान हो गया । अत : इनको जीवन भर विषम परिस्थितियों से संघर्ष करना पड़ा । किन्तु फिर भी साहित्य साधना से मुख नहीं मोड़ा । चिन्ताओं ने शरीर को जर्जर कर दिया और ये अन्ततः क्षय रोग के शिकार हो गये । माँ भारती का यह अमर गायक जीवन के केवल 48 बसन्त देखकर 15 नवम्बर , सन् 1937 को परलोकवासी हो गया ।

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साहित्यिक परिचय :-जयशंकर प्रसाद हिन्दी साहित्याकाश के उज्ज्वल नक्षत्र हैं । वह कुशल साहित्यकार और बहुमुखी प्रतिभा वाले व्यक्ति थे । उनकी पारस रूपी लेखनी का साहित्य की जिस विधा से भी स्पर्श हो गया वही कंचन बन गयी । वे जितने श्रेष्ठ कवि हैं , उतने ही महान गद्यकार हैं । गद्यकार के रूप में प्रसाद जी ने नाटक उपन्यास , कहानी और निबन्ध सभी लिखे हैं । कवि के रूप में इन्होंने महाकाव्य , खण्डकाव्य आदि की रचना की है । छायावादी काव्य के तो आप जनक हैं । संक्षेप में प्रसाद जी सच्चे अर्थो में हिन्दी साहित्य जगत के अक्षय प्रासाद है।

 

कृतियाँ :- प्रसाद जी बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे । वे एक महान कवि , सफल नाटककार , श्रेष्ठ उपन्यासकार , कुशल कहानीकार और गम्भीर निबन्धकार थे । उनकी रचनाओं का संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है।

 

नाटक :-राज्यश्री , स्कन्दगुप्त , अजातशत्रु , चन्द्रगुप्त , ध्रुवस्वामिनी । 

उपन्यास :-कंकाल , तितली , इरावती ( अपूर्ण ) । 

कहानी संग्रह :-छाया , प्रतिध्वनि , आकाश द्वीप , इन्द्रजाल और आँधी । 

निबन्ध संग्रह :-काव्य कला और अन्य निबन्ध ।

काव्य संग्रह :-चित्राधार , लहर , झरना , प्रेम पथिक , आँसू , कामायनी । 

भाषा :-प्रसाद जी की भाषा संस्कृत प्रधान है किन्तु उसमें जटिलता के दर्शन नहीं होते । इसका कारण है कि उनकी भाषा भावों के अनुकूल है । उनका शब्द चयन समृद्ध और व्यापक है । उनकी भाषा में विदेशी शब्दों का प्रयोग भी नहीं मिलता । संक्षेप में प्रसाद जी की भाषा सरस , सुमधुर और शुद्ध खड़ी बोली है ।

 

शैली :- प्रसाद जी की रचनाओं में गम्भीर और काव्यात्मक शैली के दर्शन होते हैं । भावाविष्ट अवस्था में उनका गद्य भी काव्यात्मक हो गया है । इनकी रचनाओं में निम्न प्रकार की शैलियाँ पायी जाती हैं – विवरणात्मक , चित्रात्मक , गवेषणात्मक तथा भावात्मक । उपन्यासों और कहानियों में विवरणात्मक शैली के दर्शन होते हैं , जबकि नाटकों और निबन्धों में गवेषणात्मक शैली मिलती है । देश – प्रेम , हृदय के भावों एवं अन्तर्द्वन्द्वों में भावात्मक शैली पायी जाती है । रेखाचित्रों एवं प्रकृति – चित्रों में चित्रात्मक शैली मिलती है ।

 

हिन्दी साहित्य में स्थान :- जयशंकर प्रसाद जी हिन्दी साहित्याकाश के उज्ज्वल नक्षत्र हैं । वह कुशल साहित्यकार और बहुमुखी प्रतिभा वाले व्यक्ति थे। उनकी पारस रूपी लेखनी का साहित्य की जिस विधा से भी स्पर्श हो गया , वही कंचन बन गयी । वे जितने श्रेष्ठ कवि हैं , उतने ही महान् गद्यकार हैं । संक्षेप में प्रसाद जो सच्चे अर्थों में हिन्दी – साहित्य जगत में अक्षय प्रासाद हैं ।

 

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